Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 512
________________ खण्ड 2, प्रकरण : व्याकरण-विमर्श 41 गहिन्ति सौत्रिक नियमों के कारण यह भविष्यत् अर्थ में प्रयुक्त हुआ है / (गमिष्यन्ति, ग्रहीष्यन्ति वा) / (164). 6 / 4 छिंद यहाँ 'यादादि' के स्थान में 'तुवादि' है / (0) 7122 जिच्चं यह 'जीयेत' के स्थान में सौत्रिक प्रयोग है / (282) 7 / 22 संविदे यहाँ 'संवित्ते' के स्थान पर 'संविदे' प्रयोग है / (282) 6 / 18 गच्छसि यह 'गच्छ' के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है / (311) 12 / 5 अब्बवीं यहाँ बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग है / (358) 12 / 17 लहित्थ यह सौत्रिक प्रयोग है / इसका संस्कृत रूप होगा 'लप्स्यध्वे' / (363). 12 / 25 आहु. यहाँ एकवचन के स्थान पर बहुवचन का प्रयोग है / (366) 12 / 40 चरे यहाँ बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग है / (371) .12 / 44 होमं हुणामी चूर्णिकारने 'हुणामी' को उत्तमपुरुष की क्रिया माना है।' वृहद् वृत्तिकार ने इसे प्रथम पुरुष की क्रिया माना है और अग्नि को गम्य मानकर 'होम' को साधन माना है / (373) 1676 बित यह ते के स्थान पर आर्ष-प्रयोग है / (462) 20115 भवइ यहाँ उत्तम पुरुष के स्थान पर प्रथम पुरुष है / (474) 25 // 38 मा भमिहिसि. यहाँ 'धादि' के अर्थ में भविष्यत् का प्रयोग है / (530) 36 / 54 सिज्झई यहाँ बहुवचन के स्थान पर एकवचन का प्रयोग हुआ है। (684) १-जिनदास चूर्णि, पृ० 312 /

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