Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 513
________________ 484 उत्तराध्ययने : एक समीक्षात्मक अध्ययन ८-आर्ष-प्रयोग 1 / 27 पेहाए __ यहाँ 'ए' अलाक्षणिक है / (58) 2 / 20 सुसाणे यह 'श्मशान' के अर्थ में आर्ष-प्रयोग है। 32 विसंभिया यहाँ बिन्दु अलाक्षणिक है / (181) 48 छन्दं यहाँ बिन्दु अलाक्षणिक है। 5 / 21 परियागयं यह आर्ष-प्रयोग है / यहाँ एक 'यकार' का लोप किया गया है / (250) 6 / 4 सपेहाए इसके संस्कृत रूप दो होंगे-(१) संप्रेक्षया और (2) स्वप्रेक्षया। पहले रूप के अनुसार बिन्दु का लोप है / (264) 76 आगयाएसे . प्राकृत नियमानुसार यहाँ 'आगए' की सप्तमी विभक्ति का लोप कर 'आएस' के साथ संधि की गई है / (275) 6 / 58 लोगुत्तमुत्तमं यहाँ मकार अलाक्षणिक है। 8.3 हियनिस्सेसाए मूल शब्द 'निस्सेयसाए' है / यहाँ 'य' वर्ण का लोप हुआ है / (294) 127 आसा-यहाँ तृतीया के 'एकार' का लोप हुआ है। 12 / 7 इहमागओ सि यहाँ 'मकार' को आगमिक प्रयोग माना है / (356) 13 / 5 इस श्लोक में प्रयुक्त 'अन्नमन्न' शब्द का 'नकार' अलाक्षणिक है / (383) 13 / 7 अन्नमन्नेण यहाँ 'मकार' अलाक्षणिक है / 13 / 28 चित्ता यहाँ आकार अलाक्षणिक है / (360) 17120 रूवंधरे यहाँ 'व' में बिन्दु का निर्देश प्राकृत के कारण हुआ है / (436) 1811 पत्थिवा यहाँ 'वा' में आकार अलाक्षणिक है। (440) . . .

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