Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ प्रकरण : सातवाँ उपमा और दृष्टान्त उत्तराध्ययन में गंभीर अर्थ भी सरस-सुबोध पद्धति से प्रकटित हुआ है। इस प्रकटन में उपमाओं और दृष्टान्तों का विशिष्ट योग है। यह एक पवित्र धर्म-ग्रन्थ है। किन्तु उपमाओं की बहुलता देख कर ऐसी प्रतीति होती है कि यह काव्य-ग्रन्थ है। इसीलिए संभव है विन्टरनित्ज ने इसे उत्कृष्ट श्रमण-काव्य कहा। मनुष्य-जीवन की तुलना पके हुए दुम-पत्र तथा कुश की नोक पर टिके हुए ओस-बिन्दु से की गई है (10 / 2) / काम-भोगों की तुलना किंपाक फल से की गई है (32 / 20) / ये फल देखने में मनोरम और खाने में मधुर होते हैं। किन्तु इनका परिपाक होता है मृत्यु / कहीं-कहीं उपमा-बोध बहुत सजीव हो उठा है। भृगु पुरोहित अपनी पत्नी से कह : रहा है-"मैं पुत्र-विहीन हो कर वैसा हो रहा हूँ, जैसा पंख-विहीन पंछी होता है" 'पंखाविहूणो व जहेह पक्खी' (14 / 30) साँप जैसे केंचुली को छोड़ कर चला जाता है, वैसे ही पुत्र भोगों को छोड़ कर चले जा रहे हैं (14 / 34) / महारानी कमलावती ने कहा-"जैसे पक्षिणी पिंजड़े में रति नहीं पाती, वैसे ही में इस बन्धन में रति नहीं पा रही हूँ" 'नाहं रमे पक्खि णि पंजरे वा' (14 / 41) ___ अमा की अंधियारी में दीए के सहारे चलने वाले का दीया बुझ जाए, उस समय वह देख कर भी नहीं देख पाता। इसी प्रकार धन से मृढ़ बना व्यक्ति देख कर भी नहीं देख पाता। (45) उपमा और दृष्टान्तों का अविकल संकलन नीचे दिया जा रहा हैउपमाएँ गलियस्से व कसं 1 / 12 कसं व दट्ठमाइण्णे 1 / 12 गलियस्सं व वाहए 1137 भूयाणं जगई जहा 1145 कालीपवंगसंकासे 2 / 3