Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण: 5 सभ्यता और संस्कृति (1) छिन्न-विद्या (6) लक्षण-विद्या (2) स्वर-विद्या (7) दण्ड-विद्या (3) भोम-विद्या (5) वास्तु-विद्या (4) अंतरिक्ष-विद्या (6) अंग-स्फुरण-विद्या (5) स्वप्न-विद्या (10) रुत-विद्या मतवाद वह युग धार्मिक मतवादों का युग था। बाह्य वेशों और आचारों के आधार पर भी अनेक मतवाद प्रचलित थे। विरोधी मतवादों के कुछ उदाहण ये हैं १–सेतुकरण (वृक्ष-सिंचन) में धर्म है। २-असेतुकरण में धर्म है। ३-गृहवास में धर्म है। ४-वनवास में धर्म है। ५-मुण्ड होने पर धर्म हो सकता है। ६-जटाधारी होने से धर्म हो सकता है / ७-नग्न रहने से धर्म हो सकता है। ८-वस्त्र रखने से धर्म हो सकता है। तापस उत्तराध्ययन में तापसों के कुछेक प्रकार उल्लिखित हुए हैं। उस समय की सम्प्रदायबहुलता को देखते हुए ये बहुत अल्प हैं। किन्तु इनका आकलन भी उस समय की धार्मिक स्थिति का परिचायक है चीवरधारी- चीवर या वल्कल पहनने वाले। अजिनधारी- चर्म के वस्त्र पहनने वाले। मृगचारिक, उद्दण्डक, आजीवक आदि सम्प्रदाय / जटी जटा रखने वाले। संघाटी चिथरों को जोड़कर पहनने वाले। मुण्डी सिर मुंडाने वाले। शिखी सिर पर शिखा रखने वाले। - १-बृहवृत्ति, पत्र 215,216 / २-उत्तराध्ययन, 221 ; बृहद्वृत्ति, पत्र 419 / ३-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 138 /