Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 3 श्रमण और वैदिक-परम्परा की पृष्ठ-भूमि "पंचशिख ! हाँ मुझे स्मरण है। मैं ही उस समय महागोविन्द था। मैंने ही उन श्रावकों को ब्रह्मलोक का मार्ग बतलाया था / पंचशिख ! मेरा वह ब्रह्मचर्य न निर्वेद के लिए (न विराग के लिए), न उपशम (=परम शान्ति) के लिए, न ज्ञान प्राप्ति के लिए. न सम्बोधि के लिए और न निर्वाण के लिए था। वह केवल ब्रह्मलोक-प्राप्ति के लिए था / पंचशिख ! मेरा यह ब्रह्मचर्य एकान्त ( बिलकुल ) निर्वेद के लिए, विराग० और निर्वाण के लिए है।"१ सूत्रकृतांग में भगवान् महावीर को निर्वाणवादियों में श्रेष्ठ कहा गया है / भगवान् महावीर के काल में अनेक निर्वाणवादी धाराएँ थीं, किन्तु महावीर जिस धारा में थे, वह धारा बहुत प्राचीन और बहुत परिष्कृत थी। इसीलिए उन्हें निर्वाणवादियों में श्रेष्ठ कहा गया। भगवान् बुद्ध ने निर्वाण का स्वरूप 'अस्त होना' या 'बुझ जाना' बतलाया "भिक्षुओ ! यह जो रूप का निरोध है, उपशमन है, अस्त होना है, यही दुःख का निषेध है, रोगों का उपशमन है, जरा-मरण का अस्त होना है। यह जो वेदना का निरोध है, संज्ञा का निरोध है, उपशमन है, अस्त होना है, यही दुःख का निरोध है, रोगों का उपशमन है, जरा-मरण का अस्त होना है।" "यही शान्ति है, यही श्रेष्ठता है, यह जो सभी संस्कारों का शमन, सभी चित्त-मलों का त्याग, तृष्णा का क्षय, विराग: स्वरूप, निरोध-स्वरूप निर्वाण है / ''4 किन्तु उन्होंने यह नहीं बताया कि निर्वाण के पश्चात् आत्मा की क्या स्थिति होती है ? भगवान् महावीर ने निर्वाण को उत्तरकालीन स्थिति पर पूर्ण प्रकाश डाला। इसीलिये उन्हें निर्वाणवादियों में श्रेष्ठ कहा जा सकता है। उत्तराध्ययन में छह बार 'निर्वाण' शब्द का प्रयोग हुआ है और अनेक बार 'मोक्ष' शब्द भी अन्यान्य अर्थों के साथ निर्वाण के अर्थ में भी प्रयुक्त हुआ है।" मोक्ष का वर्णन छत्तीसवें अध्ययन में है।६ अनेक अध्ययनों की परिसमाप्ति में १-दीघनिकाय, 206, पृ० 176 / २-सूत्रकृतांग, 1 / 6 / 21 / ३-संयुत्तनिकाय, 21 / 3 / ४-अंगुत्तरनिकाय, 3 // 32 // ५-देखिए-दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, शब्द-सूची, पृ० 211,268 / ६-उत्तराध्ययन, 36 / 48-67 /