Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 273 [ मेरे यहाँ जो अन्न पका है वह ब्राह्मणों के लिए है, यह मेरो श्रद्धा के कारण आत्म-हित के लिए है। यहाँ से दूर हट / यहाँ क्या खड़ा है। हे दुष्ट ! मेरे जैसे तुझे दान नहीं देते हैं / ] तब बोधिसत्व ने गाथा कही थले च निन्ने च वपन्ति बीज अनूपखेत्ते फलं आससाना, एताय सद्धाय ददाहि दानं, अप्पेव आराधये दक्खिणेय्ये // 4 // [ जिस प्रकार (कृषक) फल की आशा से ऊंचे स्थल पर भी बीज बोते हैं और नीचे स्थल पर भी। और वे पानी की जगह भी बोते हैं। इसी प्रकार तू भी ऐसी ही श्रद्धा से सबको दान दे / संभव है तू दान-देने योग्यों का (भी) सत्कार कर सके।] तब मण्डव्य ने गोथा कही खेत्तानि मय्हं विदितानि लोके येसाहं बीजानि पति?पेमि, ये ब्राह्मणा जाति मन्तूपपन्ना, तानीध खेत्तानि सुपेसलानि // 5 // [ मैं लोक में जो (दान-) क्षेत्र हैं उन्हें जानता हूँ। उन्हीं में मैं बीज डालता हूँ। जो जाति तथा मन्त्रों से युक्त ब्राह्मण हैं वे ही इस संसार में अच्छे खेत हैं।] तब बोधिसत्त्व ने दो गाथाएँ कहीं जाति मदे च अतिमानिता च, लोभो च दोसो च मदो च मोहो, एते अगुणा येसुव सन्ति सब्बे तानोध खेत्तानि अपेसलानि // 6 // जाति मदो च अतिमानिता च लोभो च दोसो च मदो च मोहो, एते अगुणा येसु न सन्ति सब्बे तानीध खेत्तानि सुपेसलानि // 7 // [ जाति-मद, अभिमान, लोभ, द्वेष, मद तथा मूढ़ता-ये सब अवगुण जिनमें हैं वे इस लोक में अच्छे ( दान-) क्षेत्र नहीं हैं। जाति-मद, अभिमान, लोभ, द्वेष, मद तथा मूढ़ता-ये सब अवगुण जिनमें नहीं हैं, वे ही इस लोक में अच्छे (दान-) क्षेत्र हैं / ]