Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खंण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण .. निवारण करेगी। उसे पूछने पर वह मेरी सभी बात बताएगी। मैंने एक बार उसका स्मरण किया। उसने कहा-"यह नाट्योन्मत्त नाम का विद्याधर है। मैं उसके द्वारा यहाँ लाई गई हूँ। मैं अधिक भाग्यवती हूँ। वह मेरा तेज सह नहीं सका। इसलिए वह मुझे इस विद्या निर्मित तथा सफेद और लाल ध्वजा से भूषित प्रासाद में छोड़ गया। मेरा वृत्तान्त जानने के लिए अपनी बहिन के पास अपनी विद्या को प्रेषित कर स्वयं वंशकुंड में चला गया। विद्या को साध कर वह मेरे साथ विवाह करेगा। आज उसकी विद्यासिद्धि होगी। . इतना सुन कर ब्रह्मदत्त कुमार ने पुष्पावती से उस विद्याधर के मारे जाने की बात कही। वह अत्यन्त प्रसन्न हो बोली-"आर्य ! आपने अच्छा किया। वह दुष्ट मारा गया।" दोनों ने गन्धर्व-विवाह किया। कुमार कुछ समय तक उसके साथ रहा। एक दिन उसने देव-वलय का शब्द सुना। कुमार ने पूछा-“यह किसका शब्द है" ? उसने कहा-"आर्यपुत्र ! विद्याधर नाटयोन्मत्त को बहिन खण्डविशाखा उसके विवाह के लिए सामग्री लेकर आ रही है। तुम थोड़ी देर के लिए यहाँ से चले जाओ। मैं उसकी भावना जान लेना चाहती हूँ। यदि वह तुम से अनुरक्त होगी तो मैं प्रासाद के ऊपर लाल ध्वजा फहरा दूंगी अन्यथा सफेद / " कुमार वहाँ से चला गया। थोड़े समय बाद कुमार ने सफेद ध्वजा देखी। वह धीरे-धीरे वहाँ से चल पड़ा और गिरि-निकुञ्ज में आ गया। वहाँ एक बड़ा सरोवर देखा। उसने उसमें डुबकी लगाई। उत्तर-पश्चिम तीर पर जा निकला। वहाँ एक सुन्दर कन्या बैठी थी। कुमार ने उसे देखा और सोचा-अहो ! यह मेरे पुण्य की परिणति है कि यह कन्या मुझे दीख पड़ी। कन्या ने भी स्नेहपूर्ण दृष्टि से कुमार को देखा और वह वहाँ से चली गई। थोड़े ही समय में एक दासी वहाँ आई और कुमार को वस्त्र-युगल, पुष्प-तंबोल आदि भेंट किए और कहा-"कुमार ! सरोवर के समीप जिस कन्या को तुमने देखा था, उसी ने यह भेंट भेजी है और आपको मंत्री के घर में ठहरने के लिए कहा है। आप वहाँ चलें और सुखपूर्वक रहें।" कुमार ने वस्त्र पहिने, अलंकार किया और नागदेव मंत्री के घर पर जा पहुंचा / दासी ने मंत्री से कहा"आपके स्वामी की पुत्री श्रीकान्ता ने इन्हें यहाँ भेजा है। आप इनका सन्मान करें और आदर से यहाँ रखें।" मंत्री ने वैसा ही किया। दूसरे दिन मंत्री कुमार को साथ ले राजा के पास गया / राजा ने उठ कर कुमार को आगे आसन दिया। राजा ने वृत्तान्त पूछा और भोजन से निवृत्त होकर कहा- "कुमार ! हम आपका और क्या स्वागत करें ! कुमारी श्रीकान्ता को आपके चरणों में भेंट करते हैं / " शुभ दिन में विवाह सम्पन्न हुआ। एक दिन कुमार ने श्रीकान्ता से पूछा-"तुम्हारे पिता ने मेरे साथ तुम्हारा विवाह कैसे किया ? मैं तो अकेला हूँ।" उसने कहा-"आर्यपुत्र ! मेरे पिता पराक्रमी हिस्सेदारों द्वारा उपद्रत होकर इस विषम पल्ली में रह रहे हैं। यह नगर-ग्राम आदि को लूट कर