Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 337 मृत्योर्वा मुखमेतद् वे, या ग्रामे वसतो रतिः / देवानामेष वै गोष्ठो, यदरण्य मिति श्रुतिः // 25 // 'ग्राम या नगर में रह कर जो स्त्री-पुत्र आदि में आसक्ति बढ़ायी जाती है, यह मृत्यु का मुख ही है और जो वन का आश्रय लेता है, यह इन्द्रियरूपी गौओं को बाँधने के लिए गोशाला के समान है, यह श्रुति का कथन है / निबन्धनी रज्जुरेषा, या ग्रामे वसतो रतिः / छित्त्वैतां सुकृतो यान्ति, नैनां छिन्दन्ति दुष्कृतः // 26 // 'ग्राम में रहने पर वहाँ के स्त्री-पुत्र आदि विषयों में जो आसक्ति होती है, यह जीव को बाँधने वाली रस्सी के समान है। पुण्यात्मा पुरुष ही इसे काट कर निकल पाते हैं / पापी पुरुष इसे नहीं काट पाते। न हिंसयति यो जन्तून्, मनोवाक्कायहेतुभिः / जीवितार्थापनयनैः, प्राणिभि ने स हिंस्यते // 27 // 'जो मनुष्य मन, वाणी और शरीररूपी साधनों द्वारा प्राणियों की हिंसा नहीं करता, उसकी भी जीवन और अर्थ का नाश करने वाले हिंसक प्राणी हिंसा नहीं करते हैं। नं मृत्युसेनामायान्ती, जातु कश्चित् प्रबाधते / ऋते सत्यमसत् त्याज्यं, सत्ये ह्यमतमाश्रितम् // 28 // 'सत्य के बिना कोई भी मनुष्य सामने आते हुए मृत्यु की सेना का कभी सामना नहीं कर सकता ; इसलिए असत्य को त्याग देना चाहिए ; क्योंकि अमृतत्व सत्य में ही स्थित है। तस्मात् सत्यव्रताचारः, सत्ययोगपरायणः / सत्यागमः सदा दान्तः, सत्येनैवान्तकं जयेत् // 29 // 'अत: मनुष्य को सत्यव्रत का आचरण करना चाहिए। सत्य-योग में तत्पर रहना और शास्त्र की बातों को सत्य मान कर श्रद्धापूर्वक सदा मन और इन्द्रियों का संयम करना चाहिए / इस प्रकार सत्य के द्वारा ही मनुष्य मृत्यु पर विजय पा सकता है / अमतं चैव मृत्युश्च, द्वयं देहे प्रतिष्ठितम् / मृत्युमापद्यते मोहात्, सत्येनापद्यतेऽमृतम् // 30 // 'अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। सोऽहं ह्यहिंस्रः सत्यार्थी, कामक्रोधबहिष्कृतः / समदुःखसुखः शेमी, मृत्युं हास्याम्यमर्त्यवत् // 31 //