Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 341 ___"दूसरा अन्तर पुत्रों की संख्या सम्बन्धी है। जातक में पुरोहित के चार पुत्रों का उल्लेख है और उत्तराध्ययन में केवल दो का / ...जैन-कथावस्तु के अनुसार पुरोहित और राजा के बीच कोई सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता, किन्तु जातक से यह ज्ञात होता है कि पुरोहित चारों पुत्रों की परीक्षा करने के लिए राजा का परामर्श लेता है और (पुरोहित और राजा) दोनों मिल कर दीक्षा ग्रहण सम्बन्धी पुत्रों की इच्छा की परीक्षा करते हैं / जैन-कथावस्तु के अनुसार यह ज्ञात होता है कि जब पुरोहित का सारा कुटुम्ब दीक्षित हो जाता है, तब राजा धर्मशास्त्र के अनुसार उसकी सम्पत्ति पर अधिकार कर लेता है / इसका असर रानी के मन पर पड़ता है और वह साध्वी बनने के लिए प्रस्तुत होती है / राजा को भी दीक्षित होने के लिए प्रेरित करती है। जैन-कथानक का यह तथ्य अधिक स्वाभाविक और यथार्थ है। जातक में ऐसा नहीं है। इसी प्रकार जातक के कथानक में वणित चार पुत्रों का समान चरित्र, पुरोहित को न्यग्नोध वृक्ष-देवता द्वारा चार पुत्रों का वरदान प्राप्त होना, राजा को एक भी पुत्र की प्राप्ति न होना ; जब कि उसे पुत्र-लाभ की अत्यन्त आवश्यकता थी तथा राजा और पुरोहित का सम्बन्ध आदि-आदि तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन-कथावस्तु प्राचीन ही नहीं, किन्तु बहुत सुरक्षित और व्यवस्थित तथा रोचक है।" महाभारत के दो अध्यायों ( शान्तिपर्व, अ० 175 तथा 277 ) में ऐसा वर्णन है, जिससे इस कथावस्तु के अन्तर्गत आए हुए पिता-पुत्र के संवाद की तुलना की जा सकती है। दोनों अध्यायों का प्रतिपाद्य एक है, नामों का भी अन्तर नहीं है। दोनों प्रकरणों (अध्याय 175 तथा 277) में महाराज युधिष्ठिर भीष्म पितामह से कल्याण का मार्ग पूछते हैं और उत्तर देते हुए भीष्म एक ब्राह्मण तथा उसके पुत्र 'मेधावी' के संवाद रूप प्राचीन इतिहास का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। पहले प्रकरण में 36 (अथवा दक्षिणात्य के अनुसार 406) श्लोक हैं और दूसरे प्रकरण में 36 श्लोक हैं / दोनों प्रकरणों के श्लोक प्रायः समान हैं, कहीं-कहीं केवल शब्दों का अन्तर है। . उत्तराध्ययन के इस अध्ययन में 53 श्लोक हैं। उनके साथ इन अध्यायों का बहुत साम्य है। पद्यों का अर्थ-साम्य और शब्द-साम्य वस्तुतः विस्मय में डाल देता है। जैन और बौद्ध-कथावस्तु में पिता और पुत्र के साथ-साथ राजा और रानी का भी पूरा प्रसंग आता है और वे सब अन्त में प्रवजित हो जाते हैं। महाभारत के इस संवाद में केवल 2-Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. 17 (1935-1936), 'A few parallels in Jain and Buddhist works', page 343, 344. २-देखिए-महाभारत, शान्तिपर्व (पृष्ठ 4871-4874 तथा 5138-5141) /