Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 4 व्यक्ति परिचय वचपन में ये नेत्र-रोग से पीड़ित हुए। विपुल-दाह के कारण सारे शरीर में भयंकर वेदना उत्पन्न हुई। चतुष्पाद चिकित्सा कराई गई, पर व्यर्थ / भाई-बन्धु भी उनकी वेदना को बंटा नहीं सके / अत्यन्त निराश हो, उन्होंने सोचा-'यदि मैं इस वेदना से मुक्त हो जाऊँ, तो प्रव्रज्या स्वीकार कर लूँगा।' वे रोग-मुक्त हो गए। माता-पिता की आज्ञा से वे दीक्षित हुए। एक बार राजगृह के मण्डिकुक्षि' चैत्य में महाराज श्रेणिक अनाथी मुनि से मिले / 2 मुनि ने राजा को सनाथ और अनाथ का अर्थ समझाया। राजा श्रेणिक उनसे धर्म की अनुशासना ले अपने स्थान पर लौट गया। मूल ग्रन्थ में 'अनाथी' का नाम नहीं है, किन्तु प्रसंग से यही नाम फलित होता है। पालित (2111) ___ यह चम्पा नगरी का सार्थवाह था। यह श्रमणोपासक था। निर्ग्रन्थ प्रवचन में इसे श्रद्धा थी। यह सामुद्रिक-व्यापार करता था। एक बार यह सामुद्रिक यात्रा के लिए निकला / जाते-जाते समुद्र-तट पर स्थित 'पिहुंड'४ नगर में रुका। वहाँ एक सेठ की लड़की से ब्याह करके लौटा। यात्रा के बीच उसे एक पुत्र हुआ। उसका नाम 'समुद्रपाल' रखा। जब वह युवा बना तब उसका विवाह 64 कलाओं में पारंगत 'रूपिणी' नामक एक कन्या से हुआ। एक बार वध-भूमि में ले जाने वाले चोर को देख कर वह विरक्त हुआ। माता-पिता की आज्ञा ले, वह दीक्षित हुआ और कर्म-क्षय कर मुक्त हो गया। समुद्रपाल (21 / 4) देखिए -'पालित'। रूपिणी (217) देखिए---'पालित' / रोहिणी (22 / 2) यह नौवें बलदेव 'राम' की माता, वसुदेव की पत्नी थी। देवकी (22 / 2) यह कृष्ण की माता और वसुदेव की पत्नी थी। १-दीघनिकाय, भाग 2, पृ० 91 में इसे 'मद्दकुच्छि' नाम से परि त किया है। २-डॉ. राधाकुमुद बनर्जी (हिन्दू सिविलाइजेशन, पृ० 187) म प्उकुक्ष में राजा श्रेणिक के धर्मानुरक्त होने की बात बताते हैं। किन्तु वे अनाथी मुनि के स्थान पर अनगारसिंह (20 / 58) शब्द से भगवान् महा रीर का ग्रहण करते हैं / परन्तु यह भ्रामक है। क्योंकि स्वयं मुनि (अनाथी) अपने मुँह से अपना परिचय देो हैं और अपने को कौशाम्बी का निवासी बताते हैं। देखिए-उत्तराध्ययन, 2018 / ३-देखिए - उत्तराध्धयन, अध्ययन 20 / ४-देखिए-भौगोलिक परिचय के अन्तर्गत 'पिहुंड' नगर /