Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन अपने अन्तःपुर में रख लिया। नागदत्त ने बहुत अनुनय किया। राजा ने आग्रह नहीं छोड़ा / अन्त में वह अपनी पत्नी के वियोग में मर गया / ' न्याय छोटी-छोटी बातों का मामला राजकुल में ले जाया जाता था। करकण्डु और किसी ब्राह्मण-कुमार के बीच एक बाँस के डण्डे को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों राजकुल में उपस्थित हुए। दोनों के तर्क सुनने के बाद राजा ने निर्णय दिया कि बाँस करकण्डु को दे दिया जाए क्योंकि वह उसके द्वारा संरक्षित श्मशान में उगा हुआ है / . .. कर-व्यवस्था उस समय अठारह प्रकार के कर प्रचलित थे। कर वसूल करने वाले को 'सुंकपाल' (सं० शुल्कपाल) कहा जाता था। व्यापारी लोग शुल्क से बचने के लिए अपना माल छिपाते थे। अचल नाम का एक व्यापारी जब पारसकुल से धन कमाकर वेन्यातट आया तो वहाँ के राजा विक्रम को राजी रखने के लिए हिरण्य, सुवर्ण और मोतियों से भरे थाल लेकर वह राजा के पास गया। राजा ने उसे बैठने के लिए आसन दिया। अचल ने कहा-“राजन् ! मैं पारसकुल से आया हूँ। आप मेरा माल जाँचने के लिए व्यक्तियों को भेजे।" राजा अपने पंचजनों के साथ गया। अचल ने अपने जहाजों में माल दिखाया। राजा ने पूछा-"इतना ही है ?" अचल ने कहा"हाँ ! सारा माल बोरों में था।" राजा ने सारा माल तुलवाया। पंचों ने उसे तौला। भार से, पैरों के प्रहार से तथा बाँस के द्वारा छेद करने से उन्हें यह पता लगा कि इस माल के बीच और कोई सार-वस्तु है। राजा ने अपने आदमियों को आदेश दिया कि इस अचल को बाँधो, यह प्रत्यक्ष चोर है। राजा ने सारे बोरे खुलवाए। किसी में सोना, किसी में चाँदी, किसी में मणि-मुक्ता और किसी में प्रवाल निकला। राजा सारे वाहनों को अपने आरक्षकों के अधिकार में देकर चला गया। राजा या जमींदार गाँव में प्रत्येक व्यक्ति से बिना पारिश्रमिक दिए ही काम कराते थे / बारी-बारी से सबको कार्य करना पड़ता था / ' १-सुखबोधा, पत्र 239 / २-वही, पत्र 134 / / ३-बृहद्वृत्ति, पत्र 605 / ४-सुखबोधा, पत्र 71 / ५-वही, पत्र 64-65 / ६-बृहवृत्ति, पत्र 553 /