Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ... शिल्पी वर्ग र व्यापारियों का एक वर्ग था 'शिल्पी वर्ग'। शिल्पी वर्ग के लोग नाना प्रकार के . कलात्मक व जीवनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते और उन्हें बेचकर अपनी आजीविका चलाते थे। उस समय लुहार वर्ग का कार्य उन्नति पर था। वे लोग खेती-बारी के लिए काम में आने वाले हल, कुदाली आदि तथा लकड़ी काटने के वसूला, फरसा आदि बनाकर बेचते थे। नगरों में स्थान-स्थान पर लुहार की शालाएँ होती थीं। क्षौर-कर्म के लिए नाई. . की दुकाने यत्र-तत्र मिलती थीं। कुम्भकार अनेक प्रकार के कुम्भ तैयार करते थे (1) निष्पावकुट- धान्य भरने के घड़े। (2) तैलकुट तैल के घड़े। - (3) घृतकुट: घी के घड़े। सिक्का वस्तु-विनिमय के साथ-साथ सिक्कों का लेन-देन भी चलता था। उस समय के प्रमुख सिक्के के थे (1) कार्षापण: (2) विंशोपक रुपये का बीसवाँ भाग। (3) काकिणी ताँबे का सबसे छोटा सिक्का। विंशोपक का चोथा भाग तथा रुपए का ८०वाँ भाग। (4) कोड़ी बीस कोड़ियों की एक काकिणी। (5) सुवर्णमाषक छोटा सिक्का। रुपया १-उत्तराध्ययन, 36 / 75 / २-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 37 // ३-बृहद्वृत्ति, पत्र 57 / ४-सुखबोधा, पत्र 73 / ५-बृहवृत्ति, पत्र 209 / / ६-वही, पत्र 276 / ७-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 161 / ८-उत्तराध्ययन, 7 / 11 / ९-वृहद्वृत्ति, पत्र 272 / १०-सुखबोधा, पत्र 124 /