Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति 421 दीनार एक बार एक द्रमक ने मजदूरी कर हजार कार्षापण कमाए। उसने एक सार्थवाह के साथ अपने गाँव की ओर प्रस्थान किया। उसने कार्षापण को भुनाया और उससे अनेक काकिणियाँ प्राप्त की। वह रास्ते में भोजन के लिए प्रतिदिन एक-एक काकिणी खर्च करता था। ____ एक बार राजा ने एक कार्पटिक को भोजन कराकर उसे युगलक और दीनार देकर भेजा था। ___एक आभीरी ने एक वणिक से रुपए देकर रुई ली थी। यान-वाहन उस समय मुख्यरूप से यातायात के लिए दो साधन थे- जलमार्ग के लिए नोका और जहाज तथा स्थल मार्ग के लिए शकट-बैलगाड़ी, रथ, हाथी, घोड़ा और ऊँट। __ द्वीपों से जितना व्यापार होता था, वह नौकाओं और जहाजों से होता था। व्यापारी अपना माल भर कर नौकाओं द्वारा दूर-दूर देशों में जाते थे। कभी-कभी रास्ते में नौका टूट जाती और सारा माल पानी में बह जाता। जहाज के वलयमुव में प्रविष्ट होने का बहुत डर रहता था। एक-एक, दो-दो व्यक्तियों की यात्राएं बहुत कम होती थीं। जब कभी बड़े-बड़े सार्थवाह यात्रा में निकलते तब उनके साथ दूसरे व्यक्ति भी हो जाते थे। इस प्रकार एक-एक सार्थवाह के साथ हजारों व्यक्ति चलते थे। इससे रास्ते का भय भी कम रहता था और सब अपने-अपने स्थान पर सुरक्षित पहुँच जाते थे।" शिविका में भी लोग आते-जाते थे। यह पुरुषों द्वारा वहन की जाती थी। राजामहराजा और समृद्ध लोग इसका विशेष उपयोग करते थे।६ अधिकतर लोग पैदल आते-जाते थे। इसीलिए यह पद प्रचलित था-'पंथ समा नत्थि जरा। १-बृहद्वृत्ति, पत्र 276 / २-वही, पत्र 146 : ...जुवलयं वीणारो य दिण्णो। ३-वही, पत्र 209 / ४-सुखबोधा, पत्र 252 / ६-बृहद्वृत्ति, पत्र 277 // ५-वही, पत्र 67 / ७-सुखबोधा, पत्र 17 //