Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . . . उस समय के चोर नाना प्रकार की सेंध लगाते थे। उत्तराध्ययन वृत्ति में कई प्रकार की सेंधों का उल्लेख हुआ है-(१) कपिशीर्षाकार, (2) कलशाकृति, (3) नन्दावर्त संस्थान, (4) पद्माकृति, (5) पुरुषाकृति और (6) श्रीवत्स संस्थान / दण्ड-व्यवस्था उस समय दण्ड-व्यवस्था कठोर थी। एक बार वाराणसी के राजा शङ्ख ने किसी अपराध पर अपने मन्त्री नमुची के प्रच्छन्न-वध की आज्ञा दे दो। पोदनपुर के पुरोहित विश्वभूति के दो लड़के थे—कमठ और मरुभूति / एक बार कमठ अपने छोटे भाई की पत्नी में आसक्त हो गया। बात राजा तक पहुंची। राजा ने कमठ के गले में मिट्टी के शरावों की माला पहना, गधे पर बिठा, 'यह अकृत्यकारी है'ऐसी घोषणा करते हुए सारे नगर में घुमा, उसे निर्वासित कर दिया / __एक बार इन्द्र-महोत्सव के उत्सव पर एक राजा ने अपने नगर के सभी नागरिकों को उपस्थित होने के लिए कहा। सभी लोग एकत्रित हुए। किन्तु एक पुरोहित-पुत्र वेश्या के घर में छिप गया। जब राजा को पता लगा तो उसे शूली-वध का दण्ड दिया गया। उसके पिता पुरोहित ने राजा से बहुत अनुनय किया और अपनी सारी सम्पत्ति देने की अर्जी की किन्तु राजा ने उसे नहीं छोड़ा। * अपराधियों को चाण्डालों के मुहल्ले में रहने का भी दण्ड दिया जाता था। चोरों की अतिक्रूरता पर उनके वध का आदेश दिया जाता था। मनुष्यों की हत्या करने पर व्यक्तियों को मरण-दण्ड दिया जाता था। गुप्तचर उस समय छोटे-छोटे राज्य होते थे। प्रत्येक राज्य में गुप्तचर सक्रिय रहते थे। एक राज्य से दूसरे राज्य में जाते समय 'गुप्तचर' की सम्भावना से साधु भी पकड़ लिए जाते थे। १-बृहद्वृत्ति, पत्र 207 / २-वही, पत्र 215 / ३-सुखबोधा, पत्र 186 / ४-वही, पत्र 286 / ५-बृहद्वृत्ति, पत्र 211 / ६-सुखबोधा, पत्र 191 / ७-बृहद्वृत्ति, पत्र 156 / ८-वही, पत्र 207 / ९-वही, पत्र 122 //