Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ .एड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति 427 निःस्वामिक धन निःस्वामिक धन पर राजा का अधिकार होता था। कुरु जनपद के उसुकार नगर के राजा इषुकार ने अपने भृगु पुरोहित के सारे परिवार के प्रवजित हो जाने पर उसका सारा धन अपने खजाने के लिए मँगवाया था।' व्यूह-रचना भारतीय युद्ध-नीति का प्रमुख अङ्ग रहा है। भगवान महावीर के समय में भी वह पद्धति प्रचलित थी। जब उज्जैनी का राजा चण्डप्रद्योत और काम्पिल्य के राजा द्विमुख के बीच में युद्ध हुआ तब उसमें चण्डप्रद्योत ने गरूड-व्यूह और द्विमुख ने सागर-व्यूह की रचना की थी। युद्ध के नौ अङ्ग माने जाते थे (1) यान (4) कौशल (7) व्यवसाय (2) आवरण (5) नीति (8) परिपूर्णाङ्ग शरीर (3) प्रहरण (6) दक्षता (6) आरोग्य -- चूर्णिकार ने इनकी व्याख्या में लिखा है कि यदि युद्ध में यान-वाहन न हों तो बेचारे पैदल सैनिक क्या करेंगे ? यान-वाहन हों और आवरण ( कवच ) न हों तो सेना सुरक्षित कैसे रह सकती है ? आवरण हों और प्रहरण न हों तो शत्रु को पराजित नहीं किया जा सकता। प्रहरण हों और उनको चलाने का कौशल न हो तो युद्ध नहीं लड़ा जा सकता। कौशल होने पर भी युद्ध की नीति (पीछे हटने या आगे बढ़ने ) के अभाव में शत्रु को नहीं जीता जा सकता। नीति के होने पर भी दक्षता ( शीघ्र निर्णायकता ) के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। दक्षता होने पर भी व्यवसाय (कठोर श्रम ) न हो तो युद्ध नहीं लड़ा जा सकता। इन सबका आधारभूत है, शरीर का परिपूर्णाङ्ग और स्वस्थ होना। १-उत्तराध्ययन, 14 // 37 / २-सुखबोधा, पत्र 136 / रइओ गरुडवूहो पज्जोएण, सायरव्यूहो दोमुहेण। ... ३-उत्तराध्ययन नियुक्त, गाथा 154 / / जाणावरणपहरणे जुद्धे कुसलत्तणं च नीई / ..... दक्खत्तं ववसाओ सरीरमारोग्गया चेव // ..... ४-उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ० 93 /