Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 104 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययने कालकरण जिस द्रव्य की जितने काल प्रमाण में निष्पत्ति होती है, उसके लिए वह 'कालकरण' . है। जैसे-~भोजन पकाने में एक मुहूर्त लगता है तो भोजन की निष्पत्ति में वही 'कालकरण' है। ज्योतिष के पाँच अंग हैं-(१) तिथि, (2) नक्षत्र, (3) वार, (4) योग और (5) करण / करण का सम्बन्ध काल से है / कालकरण के ग्यारह प्रकार हैं(१) बव (2) बालव (3) कौलव (4) स्त्रीविलोचन (5) गरादि (6) वणिज (7) वृष्टि (8) शकुनि (6) चतुष्पद (10) नाग (11) किंस्तुघ्न इनमें प्रयम सात 'चल' और अन्तिम चार 'ध्रुव' हैं। प्रत्येक का समय चार-चार प्रहर का है। कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन रात में 'शकुनि', अमावस्या के दिन में 'चतुष्पद', रात्रि में 'नाग' और प्रतिपदा के दिन 'किंस्तुघ्न'-ये चार करण अवस्थित रूप से होते हैं। भावकरण इसके दो प्रकार हैं-अजीवकरण और जीवकरण / अजीवकरण पाँच प्रकार का है-(१) पाँच प्रकार के वर्ण, (2) पाँच प्रकार के रस, (3) दो प्रकार के गन्ध, (4) आठ प्रकार के स्पर्श और (5) पाँच प्रकार के संस्थान / जीवकरण दो प्रकार का होता है-(१) श्रुतकरण और (2) नोश्रुतकरण / श्रुतकरण के दो भेद हैं-(१) बद्ध और (2) अबद्ध / बद्ध का अर्थ है-श्रुत में निबद्ध। इसके दो प्रकार हैं-(१) निशीथ और (2) भनिशीथ / निशीथ-जिसको एकान्त में पढ़ा जाता है या जिसकी व्याख्या एकान्त में की जाती है। निशीथ के दो प्रकार हैं (1) लौकिक- बृहदारण्यक आदि / (2) लोकोत्तर- निशीथ सूत्र आदि /