Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 402 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन वह अपने कपड़ों में भी इसी चूर्ण की गन्ध देता था। इतना कर लेने पर वह जिसको वश .. में करने की इच्छा करता, वह व्यक्ति स्वयं उसकी ओर आकृष्ट हो जाता था। राजा चण्डप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता ने राजा उदयन को वश में करने के लिए इसी चूर्ण का प्रयोग किया था। (ख) औषध-अंग ___ पिण्डहरिद्रा, दारुहरिद्रा, इन्द्रयव, सुंठ, पिप्पली, मरीच, आर्द्रा और बेल की जड़इन सात द्रव्यों को एक साथ पीस कर उसमें पानी डाल गुटिका बनाई जाती थी। इस गुटिका के प्रयोग से खुजली, तिमिर रोग, अर्द्धशिरोरोग, समस्त सिर की व्यथा, तीन या चार दिन के अन्तर से आने वाला जर-ये सभी रोग तथा चूहे, सर्प आदि के दंश इस गुटिका से शान्त हो जाते थे। (ग) मद्य-अंग ___ सोलह सेर द्राक्षा, चार सेर' धाय के पुष्प और ढाई सेर इक्षु रस-इनको मिलाकर मद्य बनाया जाता था। (घ) आतोद्य-अंग . मुकुन्दा नाम का वाद्य अकेला ही अपने गम्भीर स्वर के कारण तूर्य का काम कर देता था, इसलिए वह आतोद्य का विशिष्ट अंग माना जाता था। इसकी विशिष्टांगता को समझाने के लिए नियुक्तिकार ने दो उदाहरण प्रस्तुत किए हैं, जैसे-(१) अभिमार नामक वृक्ष का काष्ठ अग्नि-उत्पादक शक्ति के कारण अग्नि का विशिष्ट अंग है और (2) शाल्मली वृक्ष का फूल, बड़ा होने के कारण, अकेला ही बच्चों का मुकुट बन जाता है / (ङ) शरीर-अंग ___ शरीर के अंग आठ हैं-शिर, उर, उदर, पीठ, दो बाहु और दो ऊरु / शरीर के उपांग ग्यारह हैं-कर्ण, नासा, अक्षि, जंघा, हस्त, पाद, नख, केश, श्मश्रु, अङ्गुलि और ओष्ठ / (च) युद्ध-अंग इसके आठ अंग हैं-यान, आवरण, प्रहरण, कौशल, नीति, दक्षता, व्यवसाय और शरीर का आरोग्य / ( इनके विस्तृत वर्णन के लिए देखिए—सभ्यता और संस्कृति के अन्तर्गत युद्ध-प्रकरण) १-बृहद्वृत्ति (पत्र 143) का अभिमत है कि यह मान मागद्य-देश का है। २-उत्तराध्ययन नियुक्ति, तथा 152 /