Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ 372 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन जातक के अनुसार इस राष्ट्र का विस्तार तीन सौ योजन था।' इसमें सोलह हजार गाँव थे।२ विक्रम की चौथी-पांचवीं शताब्दी के बाद इसका नाम 'तीरहुत' पड़ा, जिसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। विक्रम की १४वीं शताब्दी में रचित 'विविध तीर्थ कल्प' में इसे 'तीरहुत्ति' नाम से पहचाना है। इसी का अपभ्रष्ट रूप 'तिरहुत' आज भी प्रचलित है / __यह एक समृद्ध राष्ट था। यहाँ का प्रत्येक घर 'कदली-वन' से सुशोभित था। खीर यहाँ का प्रिय भोजन माना जाता था। स्थान-स्थान पर वापी, कूप और तालाब मिलते थे। यहाँ को सामान्य जनता भी संस्कृत में विशारद थी। यहाँ के अनेक लोग धर्म-शास्त्रों में निपुण होते थे।४।। __ वर्तमान में नेपाल की सीमा के अन्तर्गत (जहाँ मुजफ्फरपुर और दरभंगा जिले मिलते हैं) छोटे नगर 'जनकपुर' को प्राचीन मिथिला कहा जाता है।" . सुरुचि जातक से मिथिला के विस्तार का पता लगता है। एक बार बनारस के राजा ने ऐसा निश्चय किया कि वह अपनी कन्या का विवाह एक ऐसे राजपुत्र से करेगा जो एक पत्नी-व्रत धारण करेगा। मिथिला के राजकुमार सुरुचि के साथ विवाह की बातचीत चल रही थी। एक पत्नी-व्रत की बात सुन कर वहाँ के मन्त्रियों ने कहा-'मिथिला का विस्तार सात योजन है / समूचे राष्ट्र का विस्तार तीन सौ योजन है। हमारा राज्य बहुत बड़ा है। ऐसे राज्य में राजा के अन्तःपुर में सोलह हजार रानियाँ अवश्य होनी चाहिए।' मिथिला का दूसरा नाम 'जनकपुरी' था। जिनप्रभ सूरि के समय यह 'जगती' (प्रा० जगई) नाम से प्रसिद्ध थी। इसके पास ही महाराज जनक के भाई 'कनक' का निवास-स्थान 'कनकपुर' बसा हुआ था। यहाँ जैन-श्रमणों की एक शाखा 'मैथिलिया' का उद्भव हुआ था। १-सुरुचि जातक (सं 489), भाग 4, पृ० 521-522 / २-जातक (सं 406), भाग 4, पृ० 27 / ३-विविध तीर्थकल्प, पृ० 32 : .."संपइकाले 'तीरहुत्ति देसो' ति भण्णई / ४-वही, पृ० 32 / ५-दी एन्शियन्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ० 718 / ६-जातक सं० 489, भाग 4, पृ० 521-522 / ७-विविध तीर्थकल्प, पृ० 32 / ८-कल्पसूत्र, सूत्र 213, पृ० 64 /