Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ खण्ड 2, प्रकरण :1 कथानक संक्रमणे 336 'परमात्मा के साथ एकता तथा समता, सत्यभाषण, सदाचार, ब्रह्मनिष्ठा, दण्ड का परित्याग (अहिंसा), सरलता तथा सब प्रकार के सकाम कर्मों से उपरति—इनके समान ब्राह्मण के लिए दूसरा कोई धन नहीं है। किं ते धनैर्बान्धवैर्वापि कि ते, किं ते दारैर्ब्राह्मण यो मरिप्यसि / आत्मानमन्विच्छ गुहां प्रविष्टं, पितामहास्ते क्व गताः पिता च // 38 // 'ब्राह्मणदेव पिताजी ! जब आप एक दिन मर ही जायेंगे तो आपको इस धन से क्या लेना है अथवा भाई-बन्धओं से आपका क्या काम है तथा स्त्री आदि से आपका कौनसा प्रयोजन सिद्ध होने वाला है ? आप अपने हृदयरूपी गुफा में स्थित हुए परमात्मा को खोजिए / सोचिए तो सही, आपके पिता और पितामह कहाँ चले गए !' पुत्रस्यैतद् वचः श्रुत्वा यथाकार्षीत् पिता नृप। तथा त्वमपि वर्तस्व सत्यधर्मपरायणः // 39 // भीष्मजी कहते हैं-'नरेश्वर ! पुत्र का यह वचन सुन कर पिता ने जैसे सत्य-धर्म का अनुष्ठान किया था, उसी प्रकार तुम भी सत्य-धर्म में तत्पर रह कर यथायोग्य बर्ताव करो।' जैन-कथावस्तु का संक्षिप्त सार जन-कथावस्तु तथा बौद्ध-कथावस्तु में बहुत साम्य है। सारी कथावस्तु एक ही धुरी पर घूमती-सी प्रतीत होती है। जो कुछ अन्तर है, वह बहुत ही सामान्य है। जन-कथावस्तु के छह पात्र हैं (1) महाराज इषुकार (2) महारानी कमलावती (3) पुरोहित भृगु (4) पुरोहित की पत्नी यशा (5,6) पुरोहित के दो पुत्र पुरोहित के दोनों पुत्र दीक्षा के लिए प्रस्तुत होते हैं। माता-पिता उन्हें ब्राह्मणपरम्परा के अनुसार गार्हस्थ्य-धर्म के अनुशीलन का उपदेश देते हैं और पुत्र संसार की असारता को दिखाते हुए एक दिन प्रवजित हो जाते हैं। माता-पिता भी उनके साथ दीक्षित हो जाते हैं। पुरोहित का कोई उत्तराधिकारी नहीं होने से राजा का मन उसकी धन-सम्पत्ति लेने के लिए ललचा जाता है। रानी उस परित्यक्त धन को वमन से उपमित करती है। राजा का मन विरक्ति से भर जाता है। राजा-रानी दोनों प्रवजित हो जाते हैं।