Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन "घरों में आग लग गई है। ज्वाला निकल रही है। खजाने जल रहे हैं। सोना, चाँदी, मणि, मुक्ता--सभी जल रहे हैं। हे राजन् ! आप आ कर रोकें।" राजा महाजनक ने कहा सुसुखं बत जीवाम येसं नो नत्थि किञ्चनं / मिथिलाय डयूहमानाय न मे किंचि अडयहथ // 125 // ___ "हमारे पास कुछ नहीं है। हम सुखपूर्वक जीते हैं। मिथिला नगरी के जलने पर मेरा कुछ नहीं जलता। सुसुख बत जीवाम येसं नो नत्थि किंचनं / रटे विलुप्पमानम्हि न मे किंचि अजीरथ // 127 // सुसुख वत जीवाम येसं नो नत्यि किंचनं / पीतिभक्खा भविस्साम देवा आभास्सरा यथा // 12 // "हमारे पास कुछ नहीं। हम सुखपूर्वक जीते हैं। राष्ट्र के उजड़ने से मेरी कुछ हानि नहीं।" "हमारे पास कुछ नहीं। हम सुखपूर्वक जीते हैं / जैसे अभास्वर देवता, वैसे ही हम प्रीति-भक्षक हो कर रहेंगे।" राजा सबको छोड़ आगे चला गया। देवी साथ थी। दोनों बातचीत करते एक नगर-द्वार पर पहुंचे। वहाँ एक लड़की बालू को थाथपा रही थी। उसके एक हाथ में एक कंगन था। दूसरे में दो। एक बज रही थी। दूसरी निःशब्द थी। राजा ने पूछा"हे कुमारिके ! क्या कारण है कि तेरी एक भुजा बजती है, एक नहीं बजती ?' उसने कहा-"मेरे इस हाथ में दो कंगन हैं। रगड़ से शब्द पैदा होता है। दो होने से यही होता है / हे श्रमग! मेरे इस हाथ में एक ही कंगन है। वह अकेला होने से आवाज नहीं करता। दो होने से विवाद होता है, एक किससे विवाद करेगा ? स्वर्ग की कामना करने वाले तुझ को अकेले रहना रुचिकर लगेगा।" 2 ___वे चले गए / एक उसुकार ( वंस-फोड़ ) के यहाँ रुके। वह एक आँख से बाँस को देख रहा था। महाजनक ने पूछा- "हे वंस-फोड़ ! क्या तुझे इस तरह अच्छा दिखाई देता है, जो तू एक आँख को बन्द कर के एक से बाँस के टेढ़ेपन को देखता है ?"3 उसने कहा- "हे श्रमण ! दोनों आँखों से विस्तृत-सा दिखाई देता है। टेढ़ी जगह १-जातक, 539, श्लो० 158 / २-वही, 539, श्लो० 156-161 / ३-वही, 539, श्लो० 165 /