Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 2 प्रत्येक-बुद्ध . . को खुदाई होने लगी। पाँचवें दिन एक रत्नमय देदीप्यमान महामुकुट निकला। राजा को सूचना मिली / वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ। थोड़े ही काल में चित्र-सभा का कार्य सम्पन्न हुआ। शुभ दिन देख कर राजा ने वहाँ प्रवेश किया और मंगल-वाद्य ध्वनियों के बीच उस मुकुट को धारण किया। उस मुकुट के प्रभाव से उसके दो मुंह दीखने लगे। लोगों ने उसका नाम 'द्विमुख' रखा। काल अतिक्रान्त हुआ। राजा के सात पुत्र हुए, पर एक भी पुत्री नहीं हुई। गुणमाला उदासीन रहने लगी। उसने मदन नामक यक्ष की आराधना प्रारम्भ की। यक्ष प्रसन्न हुा / उसके एक पुत्री हुई। उसका नाम 'मदनमञ्जरी' रखा। उज्जैनी के राजा चण्ड प्रद्योत ने मुकुट की बात सुनी। उसने दूत भेजा। दूत ने द्विमुख राजा से कहा- “या तो आप अपना मुकुट चण्डप्रद्योत राजा को समर्पित करें या युद्ध के लिए तैयार हो जाएँ ?" द्विमुख राजा ने कहा- 'मैं अपना मुकुट तभी दे सकता हूँ जबकि वह मुझे चार वस्तुएँ दे--(१) अनलगिरि हाथी, (2) अग्निभीरु रथ, (3) शिवादेवी और (4) लोहजंघ लेखाचार्य / ___ दूत ने जा कर चण्डप्रद्योत से सारी बात कही। वह कुपित हुआ और चतुरंगिणी सेना ले द्विमुख पर उसने चढ़ाई कर दी। वह सीमा पर पहुँचा। सेना का पड़ाव डाला और गरुड-व्यूह की रचना की। द्विमुख भी अपनी सेना ले सीमा पर आ डटा। उसने सागर-व्यूह की रचना की। ___ दोनों ओर भयंकर युद्ध हुआ। मुकुट के प्रभाव से द्विमुख की सेना अजेय रही। प्रद्योत की सेना भागने लगी। वह हार गया। द्विमुख ने उसे बन्दी बना डाला। - चण्डप्रद्योत कारागृह में बन्दी था। एक दिन उसने राजकन्या मदनमञ्जरी को देखा। वह उसमें आसक्त हो गया। ज्यों-त्यों रात बीती। प्रातःकाल हुआ। राजा द्विमुख वहाँ आया। उसने प्रद्योत को उदासीन देखा। कारण पूछने पर उसने सारी बात कही। उसने कहा-'यदि मदनमञ्जरी नहीं मिली तो मैं अग्नि में कूद कर मर जाऊँगा।" द्विमुख ने अपनी कन्या का विवाह उससे कर दिया। चण्डप्रद्योत अपनी नववधू को साथ ले उज्जनी चला गया। एक बार इन्द्र-महोत्सव' आया। राजा की आज्ञा से नागरिकों ने इन्द्रध्वज की १-इस महोत्सव का प्रारम्भ भरत ने किया था। निशीथचणि (पत्र 1174) में इसको आषाढी पूर्णिमा के दिन मनाने का तथा आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति (पत्र 359) में कार्तिक पूर्णिमा को मनाने का उल्लेख है। लाड देश में श्रावण पूर्णिमा को यह महोत्सव मनाया जाता था।