Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . _ 'जैसे सोए हुए मृग को बाघ उठा ले जाता है, उसी प्रकार पुत्र और पशुओं से सम्पन्न एवं उन्हीं में मन को फंसाए रखने वाले मनुष्य को एक दिन मृत्यु आकर उठा ले जाती है। संचिन्वानकमेवैनं, कामानामवितृप्तकम् / व्याघ्रः पशु मिवादाय, मृत्युरादाय गच्छति // 19 // 'जब तक मनुष्य भोगों से तृत नहीं होता, संग्रह ही करता रहता है, तभी तक ही उसे मौत आकर ले जाती है / ठीक वैसे ही, जैसे व्याघ्र किसी पशु को ले जाता है। . इदं कृतमिदं कार्यमिदमन्यत् कृताकृतम् / एवमोहासुखासक्तं कृतान्तः कुरुते वशे // 20 // 'मनुष्य सोचता है कि यह काम पूरा हो गया, यह अभी करना है और यह अधूरा ही पड़ा है, इस प्रकार चेष्टाजनित सुखमें आसक्त हुए मानव को काल अपने वश में कर लेता है। कृतानां फलमप्राप्तं, कर्मणां कर्मसंज्ञितम् / शेत्रापणगृहासक्त, मत्युरादाय गच्छति // 21 // 'मनुष्य अपने खेत, दूकान और घर में ही फँसा रहता है, उसके किए हुए उन कर्मों का फल मिलने भी नहीं पाता, उसके पहले ही उस कर्मासक्त मनुष्य को मृत्यु उठा ले जाती है। दुबलं बलवन्तं च, शूरं भोरं जडं कविम् / अप्राप्तं सर्वकामार्थान्, मृत्युरादाय गच्छति // 22 // 'कोई दुर्बल हो या बलवान्, शुरवीर हो या डरपोक तथा मूर्ख हो या विद्वान्, मृत्यु उसको समस्त कामनाओं के पूर्ण होने से पहले ही उसे उठा ले जाती है / मृत्युर्जरा च व्याधिश्च, दुःखं चानेककारणम् / अनुषक्तं यदा देहे, किं स्वस्थ इव तिष्ठसि // 23 // 'पिताजी ! जब इस शरीर में मृत्यु, जरा, व्याधि और अनेक कारणों से होने वाले दुःखों का आक्रमण होता ही रहता है, तब आप स्वस्य-से होकर क्यों बैठे हैं ? जातमेवान्तकोऽन्ताय, जरा चान्वेति देहिनम् / अनुषक्ता द्वयेनैते, भावाः स्थावरजङ्गमाः // 24 // 'देहधारी जीव के जन्म लेते ही अन्त करने के लिए मौत और बुढ़ापा उसके पीछे लग जाते हैं / ये समस्त चराचर प्राणो इन दोनों से बंधे हुए हैं। .