Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
View full book text
________________ 334 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन आयु-क्षय रूप काम कर बीत रहे हैं, ऐसी दशा में भी आप धीर की भाँति कैसी बात कर रहे हैं।' कथमभ्याहतो लोकः, केन वा परिवारितः / अमोघाः काः पतन्तीह, किं नु भीषयसीव माम् // 8 // पिता ने पूछा- 'बेटा ! तुम मुझे भयभीत-सा क्यों कर रहे हो ? बताओ तो सही, यह लोक किससे मारा जा रहा है, किसने इसे घेर रखा है, और यहाँ कौन-से ऐसे व्यक्ति हैं जो सफलतापूर्वक अपना काम करके व्यतीत हो रहे हैं।' मृत्युनाभ्याहतो लोको, जरया परिवारितः। अहोरात्राः पतन्त्येते, ननु कस्मान्न बुध्यसे // 9 // पुत्र ने कहा-'पिताजी ! देखिए, यह सम्पूर्ण जगत् मृत्यु के द्वारा मारा जा रहा है। बुढ़ापे ने इसे चारों ओर से घेर लिया है और ये दिन-रात ही वे व्यक्ति हैं जो सफलतापूर्वक प्राणियों की आयु का अपहरणस्वरूप अपना काम करके व्यतीत हो रहे हैं, इस बात को आप समझते क्यों नहीं हैं ? अमोघा रात्रयश्चापि नित्यमायान्ति यान्ति च / यदाहमेतज्जानामि न मृत्युस्तिप्ठतीति ह।. सोऽहं कथं प्रतीक्षिप्ये जालेनापिहितश्चरन् // 10 // 'ये अमोघ रात्रियाँ नित्य आती हैं और चली जाती हैं। जब मैं इस बात को जानता हूँ कि मृत्यु क्षणभर के लिए भी रुक नहीं सकती और मैं उसके जाल में फंसकर ही विचर रहा हूँ, तब मैं थोड़ी देर भी प्रतीक्षा कैसे कर सकता हूँ ? राव्यां राव्यां व्यतीतायामायुरल्पतरं यदा। गाधोदके मत्स्य इव सुखं विन्देत कस्तदा // 11 // 'जब एक-एक रात बीतने के साथ ही आयु बहुत कम होती चली जा रही है, तब छिछले जल में रहनेवाली मछली के समान कौन सुख पा सकता है ? तदैव वन्ध्यं दिवसमिति विद्याद् विचक्षणः / अनवाप्तेषु कामेषु मृत्युरभ्येति मानवम् // 12 // _ 'जिस रात के बीतने पर मनुष्य कोई शुभ कर्म न करे, उस दिन को विद्वान् पुरुष व्यर्थ ही गया समझे। मनुष्य की कामना पूरी भी नहीं होने पातीं कि मौत उसके पास आ पहुँचती है। शपाणीव विचिन्वन्तमन्यत्रगतमानसम् / वृकीवोरणमासाद्य मृत्युरादाय गच्छति // 13 // 'जैसे घास चरते हुए भेड़ों के पास अचानक व्याघ्री पहुँच जाती है और उसे दबोचकर