Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 332 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययने / पर्णशालाओं में प्रवजितों की आवश्यकताएं दीवार पर अक्षर लिखे, जो कोई भी प्रवजित होना चाहे, इन प्रवजितों की आवश्यकताओं को ले ले।" फिर अपने प्रताप से भयानक शब्द, मृग, पक्षी, दुर्दर्शनीय अमनुष्यों को दूर करके अपने स्थान को ही चला गया। ___ हस्तिपाल कुमार ने डण्डी-डण्डी जाकर शक के दिए हुए आश्रम में प्रवेश किया और लिखे अक्षरों को देख, सोचा शक्र ने मेरे महान् अभिनिष्क्रमण की बात जान ली होगी। उसने द्वार खोल, पर्णशाला में प्रवेश किया और ऋषियों के ढंग की प्रव्रज्या के चिह्नों को लेकर निकल पड़ा। फिर चंक्रमण-भूमि में उतर, कई बार इधर- उधर जा, सारी जनता को प्रवजित कर, आश्रम का विचार किया। तब तरुण पुत्रों और स्त्रियों को बीच की जगह में पर्णशाला दी, उसके बाद बूढ़ी स्त्रियों को, उसके बाद बाँझ स्त्रियों को, और अन्त में चारों ओर घेर कर पुरुषों को स्थान दिया। तब एक राजा यह सुन कि वाराणसी में राजा नहीं है, आया। उसने सजे-सजाये नगर को देख, राज-भवन में चढ़, जहाँ-तहाँ रत्नों के ढेर देख सोचा, 'इस प्रकार के नगर को छोड़ प्रवजित होने के समय से यह प्रव्रज्या महान् होगी।' उसने एक पियक्कड़ से मार्ग पछा और हस्तिपाल के पास ही चला गया। हस्तिपाल को जब पता लगा कि वह वन के सिरे पर आ पहुँचा है, तो अगवानी कर, आकाश में बैठ धर्मोपदेश दे, आश्रम ला, सभी लोगों को प्रव्रजित किया। इसी प्रकार और भी छः राजा प्रव्रजित हुए / सात राजाओं ने सम्पत्ति छोड़ी। छत्तीस-योजन का प्राश्रम सारा का सारा भर गया। जो काम-वितर्क आदि वितर्कों में से किसी संकल्प को मन में जगह देता, महापुरुष उसे धर्मोपदेश दे ब्रह्म-विहार और योग-विधि बताते। उनमें से अधिकांश ध्यान तथा अभिञा प्राप्त कर तीन हिस्सों में से दो हिस्से ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुए। फिर तीसरे हिस्से के तीन हिस्से करके, एक हिस्सा ब्रह्मलोक में पैदा हुआ, एक छः काम-लोगों में, एक ऋषियों की सेवा कर मनुष्य लोक में तीनों कुशल सम्पत्तियों में पैदा हुए। इस प्रकार हस्तिपाल के शासन में न कोई नरक में पैदा हुआ, न कोई पशु होकर पैदा हुआ, न कोई प्रेत होकर पैदा हुआ और न कोई असुर होकर पैदा हुआ। महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 175 अतिक्रामति कालेऽस्मिन्, सर्वभूतक्षयावहे। किं श्रेयः प्रतिपद्यत, तन्मे बू हि पितामह // 1 // राजा युधिष्ठिर ने पूछा-'पितामह ! समस्त भूतों का संहार करनेवाला यह काल बराबर बीता जा रहा है, ऐसी अवस्था में मनुष्य क्या करने से कल्याण का भागी हो सकता है ? यह मुझे बताइए।'