Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 330 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन करा, राज-भवन में प्रवेश कर, देवी की वन्दना को और एक ओर खड़े हो यह गाथा कही राजा च पब्बज्जं आरोचयित्थ रटुं पहाय नरविरियसेट्ठो, तुवम्पि नो होहि यथेव राजा अम्हे हि गुत्ता अनुसास रज्जं // 21 // 'राजा को प्रव्रज्या अच्छी लगी। वह नरवीर्यश्रेष्ठ राज छोड़ कर चला गया। अब तुम हमारी वैसी ही 'राजा' बन जाओ। हमारे द्वारा सुरक्षित रह कर राज्यानुशासन करो।' उसने जनता का कहना सुन शेष गाथाएँ कहीं-- राजा च पब्बज्ज आरोचयित्थ रष्टुं पहाय नरविरियसेट्ठो अहं पि एका चरिस्सामि लोके हित्वान कामानि मनोरमानि // 22 // राजा च.......................... हित्वान कामानि यथोधिकानि // 23 // अच्चेन्ति काला तरयन्ति रत्तियो वयोगुणा अनुपब्बं जहन्ति, अहं पि एका चरिस्सामि लोके , हित्वान कामानि मनोरमानि // 24 // अच्चेन्तिः हित्वान कामानि ययोधिकानि // 25 // अच्चेन्ति............ सीतिभूता सब्बं अतिच्च संगं // 26 // 'राजा को प्रव्रज्या अच्छी लगो। वह नरवीर्यश्रेष्ठ राज्य छोड़कर चला गया। मैं भी मनोरम काम-भोगों को छोड़कर लोक में अकेली विचरूंगी / ' 'राजा को..... मैं भी नाना प्रकार के काम-भोगों को छोड़कर लोक में अकेली विचरूंगी।' ___ 'काल चला जाता है, रातें गुजर जाती हैं, आयु क्रमानुसार व्यतीत हो जाती है। मैं भी मनोरम काम-भोगों को छोड़ कर लोक में अकेली विचरूंगी।' .