Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 262 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन दुर्ग में चले आते हैं। मेरी माता श्रीपती के चार पुत्र थे। उनके बाद मैं उत्पन्न हुई। इसलिए पिता का मुझ पर अत्यन्त स्नेह था। जब मैं युवती हुई, तब एक बार पिता ने कहा-"पुत्री ! सभी राजा मेरे विरुद्ध हैं अत: जो घर बैठे ही तुम्हारे लिए उचित वर आ जाए तो मुझे कहना।" इसीलिए मैं प्रतिदिन सरोवर पर जाती हूँ और मनुष्यों को देखती हूँ। आज मेरे पुण्यबल से तुम दीख पड़े / यही सब रहस्य है। ___कुमार श्रीकान्ता के साथ विषय-सुख भोगने लगा। कुछ दिन बीते। एक बार वह पल्लीपति अपने साथियों को साथ ले एक नगर को लूटने गया। कुमार भी उसके साथ था। गाँव के बाहर कमल सरोवर के पास उसने अपने मित्र वरधनु को बैठे देखा। वरधनु ने भी कुमार को पहिचान लिया। असंभावित दर्शन के कारण वह रोने लगा। कुमार के उसे सान्त्वना दी। उसे उठाया। वरधनु ने कुमार से पूछा-"मेरे परोक्ष में तुमने क्या-क्या अनुभव किए हैं ?" कुमार ने अथ से इति तक सारा वृत्तान्त कह सुनाया। कुमार ने कहा- "तुम अपनी भी बात बताओ।" ___ वरधनु ने कहा-"कुमार ! मैं तुम्हें एक वट-वृक्ष के नीचे बैठे छोड़ कर पानी लेने गया था। मैंने एक बड़ा सरोवर देखा। मैं एक दोने में जल भर तुम्हारे पास आ रहा था। इतने में ही महाराज दीर्घ के सन्नद्ध भट्ट मेरे पास आए और बोले---'वरधनु ! ब्रह्मदत्त कहाँ है ?' मैंने कहा- 'मैं नहीं जानता।' उन्होंने मुझे बहुत पीटा, तब मैंने कहा-'कुमार को बाघ ने खा लिया।' भट्टों ने कहा'वह प्रदेश हमें बताओ, जहाँ बाघ ने कुमार को खाया था।' इधर-उधर घूमता हुआ मैं कपट से तुम्हारे पास आया और तुम्हें भाग जाने के लिए संकेत किया। मैंने भी परिव्राजक द्वारा दी गई गुटिका मुंह में रखी और उसके प्रभाव से मैं बेहोश हो गया। मुझे मरा हुआ समझ कर वे भट्ट चले गए। बहुत देर बाद मैंने मुंह से गुटिका निकाली। मुझे होश हो आया। होश आते ही मैं तुम्हारी टोह में निकल पड़ा, परन्तु कहीं भी तुम नहीं मिले। मैं एक गाँव में गया। वहाँ एक परिव्राजक ने कहा-मैं तुम्हारे पिता का मित्र हूँ / मेरा नाम वसुभाग है। उसने कहा—'तुम्हारे पिता धनु भाग गए / राजा दोघं ने तुम्हारी माता को मातङ्ग के मुहल्ले में डाल दिया।' यह सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ। मैं काम्पिल्यपुर गया और कापालिक का वेश धारण कर उस मातङ्ग वस्ती के प्रधान को धोखा दे माता को ले आया। एक गाँव में मेरे पिता के मित्र ब्राह्मण देवशर्मा के यहाँ माँ को छोड़ कर तुम्हारी खोज में यहाँ आया हूँ।" इस प्रकार दोनों अपने-अपने सुख-दुःख की बातें कर रहे थे। इतने में ही एक पुरुष वहाँ आया। उसने कहा-"महाभाग ! तुम्हें यहाँ से कहीं भाग जाना चाहिए / तुम्हारी खोज करते-करते राजा दीर्घ के मनुष्य यहाँ आ गए हैं।" इतना सुन दोनों कुमार और वरधनु, वहाँ से चल पड़े। गहन जंगलों को पार कर वे