Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण:१ कथानक संक्रमण "राजन् ! इन मनोरम काम-भोगों को छोड़ कर जब कभी मरना होगा / हे नरदेव ! एक धर्म ही त्राण है / उसके सिवाय कोई दूसरी वस्तु त्राण नहीं दे सकती। ___ "जैसे पक्षिणी पिंजड़े में आनन्द नहीं मानती, वैसे ही मुझे इस बंधन में आनन्द नहीं मिल रहा है / मैं स्नेह के जाल को तोड़ कर अकिंचन, सरल क्रिया वाली, विषय-वासना से दूर और परिग्रह एवं हिंसा के दोषों से मुक्त हो कर मुनि-धर्म का आचरण करूंगी। "जैसे दवाग्नि लगी हुई है, अरण्य में जीव-जन्तु जल रहे हैं, उन्हें देख राग-द्वेष के वशीभूत हो कर दूसरे जीव प्रमुदित होते हैं, उसी प्रकार काम-भोगों में मूच्छित हो कर हम मूढ़ लोग यह नहीं समझ पाते कि यह समूचा संसार राग-द्वेष की अग्नि से जल ___ "विवेकी पुरुष भोगों को भोग कर फिर उन्हें छोड़ कर वायु की तरह अप्रतिबद्धविहार करते हैं और वे स्वेच्छा से विचरण करने वाले पक्षियों की तरह प्रसन्नतापूर्वक स्वतंत्र विहार करते हैं। . "आर्य ! जो काम-भोग अपने हाथों में आए हुए हैं और जिनको हमने नियंत्रित कर रखा है, वे कूद-फाँद कर रहे हैं। हम कामनाओं में आसक्त बने हुए हैं, किन्तु अब हम भी वैसे ही होंगे, जैसे कि अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ भृगु हुए हैं। "जिस गीध के पास मांस होता है, उस पर दूसरे पक्षी झपटते हैं और जिसके पास मांस नहीं होता, उस पर नहीं झपटते—यह देख कर मैं आमिष (धन, धान्य आदि) को छोड़, निरामिष हो कर विचरूंगी। "गीध की उपमा से काम-भोगों को संसार-वर्धक जान कर मनुष्य को इनसे इसी प्रकार शंकित हो कर चलना चाहिए, जिस प्रकार गरुड़ के सामने सांप शंकित हो कर चलता है। "जैसे बन्धन को तोड़ कर हाथी अपने स्थान (विंध्याटवी) में चला जाता है, वैसे ही हमें अपने स्थान (मोक्ष) में चले जाना चाहिए। हे महाराज इषुकार ! यह पथ्य. है, इसे मैंने ज्ञानियों से सुना है।" राजा और रानी विपुल राज्य और दुस्त्यज्य काम-भोगों को छोड़ निविषय, निरामिष, निःस्नेह और निष्परिग्रह हो गए। धर्म को सम्यक् प्रकार से जान, आर्कषक भोग-विलास को छोड़, वे तीर्थङ्कर के द्वारा उपदिष्ट घोर तपश्चर्या को स्वीकार कर संयम में घोर पराक्रम करने लगे। - इस प्रकार वे सब क्रमशः बुद्ध हो कर धर्म-परायण, जन्म और मृत्यु के भय से उद्विग्न बन गए तथा दुःख के अन्त की खोज में लग गए।