Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण :1 कथानक संक्रमण 286 वस्त्र पहिनाएं और श्रीवत्सालंकृत चार अंगुल प्रमाण पट्ट-बंधन से वक्षस्थल को आच्छादित किया। वरधनु ने भी वेष परिवर्तन किया। दोनों गाँव में गए / एक दास के लड़के ने घर से निकल कर उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। वे दोनों उसके घर गए। पूर्ण सम्मान से उन्हें भोजन कराया। उस गृहस्वामी के बंधुमती नाम की एक पुत्री थी। भोजन कर चुकने पर एक महिला आई और कुमार के सिर पर आखे (अक्षत) डाले और कहा- "यह बंधुमती का पति है।" यह सुन कर वरधनु ने कहा- "इस मूर्ख बटुक के लिए क्यों अपने आपको नष्ट कर रहे हो ?" गृहस्वामी ने कहा-"स्वामिन ! एक बार नैमित्रिक ने हमें कहा था जिस व्यक्ति का वक्षस्थल पट्ट से आच्छादित होगा और जो अपने मित्र के साथ यहाँ भोजन करेगा, वही इस कन्या का पति होगा।" कुमार ने बंधुमती के साथ विवाह किया / दूसरे दिन वरधनु ने कुमार से कहा- "हमें बहुत दूर जाना है / " बंधुमती से प्रस्थान की बात कह वरधनु और कुमार दोनों वहाँ से चल पड़े। एक गाँव में आए / वरधनु पानी लेने गया / शीघ्र ही आ उसने कहा-"कुमार ! लोगों में यह जनश्रुति है कि राजा दीर्घ ने ब्रह्मदत्त के सारे मार्ग रोक लिए हैं, अब हम पकड़े जाएँगे / अतः कुछ उपाय ढूँढ़ना चाहिए।" दोनों राजमार्ग को छोड़, उन्मार्ग से चले। एक भयंकर अटवी में पहुंचे। कुमार प्यास से व्याकुल हो गया। वह एक वट-वृक्ष के नीचे बैठा। वरधनु पानी की टोह में निकला। घूमते-घूमते वह दूर जा निकला। राजा दीर्घ के सिपाहियों ने उसे देख लिया। उन्होंने इसका पीछा किया। वह बहुत दूर चला गया। ज्यों-त्यों कुमार के पास आ उसने चलने का संकेत किया। कुमार ब्रह्मदत्त वहाँ से भागा। वह एक दुर्गम कान्तार में जा पहुंचा। प्यास और भूख से परिक्लान्त होता हुआ तीन दिन तक चलकर कान्तार को पार किया। उसने वहाँ एक तापस को देखा। तापस के दर्शन मात्र से उसे जीवित रहने की आशा हो गई। उसने पूछा- "भगवन् ! आपका आश्रम कहाँ है ?" तापस ने आश्रम का स्थान बताया और उसे कुलपति के पास ले गया। कुमार ने कुलपति को प्रणाम किया। कुलपति ने पूछा-"वत्स ! यह अटवी अपाय बहुल है। तुम यहाँ कैसे आएं ?" कुमार ने सारी बात यथार्थ रूप में उनसे कही। - कुलपति ने कहा-"वत्स ! तुम मुझे अपने पिता का छोटा भाई मानो / यह आश्रमपद तुम्हारा ही है। तुम यहाँ सुखपूर्वक रहो।" कुमार वहीं रहने लगा / काल बीता। वर्षा ऋतु आ गई / कुलपति ने कुमार को चतुर्वेद आदि महत्त्वपूर्ण सारी विद्याएँ सिखाई। ___एक बार शरद् ऋतु में तापस फल, कंद, मूल, कुसुम, लकड़ी आदि लाने के लिए अरण्य में गए। वह कुमार भी कुतूहलवश उनके साथ जाना चाहता था। कुलपति ने उसे रोका, पर वह नहीं माना और अरण्य में चला गया। वहाँ उसने अनेक सुन्दर वनखण्ड देखे / वहाँ के वृक्ष फल और पुष्पों से समृद्ध थे। उसने एक हाथी देखा और गले