Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 275 उसने प्राचीन दिशा की ओर जा एक गली में उतर ऐसा दृढ़-संकल्प किया कि उसके पाँव के चिन्ह दिखाई दें। वहाँ पूर्व-द्वार के पास भिक्षाटन करके मिला-जुला भोजन प्राप्त किया और एक शाला में बैठ वह मिला-जुला भोजन खाया / नगर-देवताओं से जब यह सहन न हो सका कि यह राजा हमारे आर्य को दुःख देने वाली बात कहता हैं तो वे आये / बड़े यक्ष ने उसकी गर्दन पकड़ कर मरोड़ी, शेष देवताओं ने शेष ब्राह्मणों की गर्दन पकड़ कर मरोड़ी। बोधिसत्व के चित्त की कोमलता के कारण 'उसका पुत्र है' जान मारा नहीं, केवल कष्ट दिया। मण्डव्य का सिर घूम कर पीठ की ओर हो गया। हाथ-पाँव सीधे होकर खड़े हो गये, आँखें बदल कर मुर्दे के समान हो गई। वह लकड़ी-शरीर होकर गिर पड़ा। शेष ब्राह्मण मुँह से थूक गिराते हुए इधर-उधर लोटते थे। दिद्वमङ्गलिका को सूचना दी गई—आर्थे ! तेरे पुत्र को कुछ हो गया है। वह जल्दी से आई और पुत्र को देख कर बोली-यह क्या ! उसने गाथा कही आवेठितं पिद्वितो उत्तमाङ्ग * बाहं पसारेति अकम्मनेय्यं, सेतानि अक्खीनि कथा मतस्स को मे इयं पुत्तं अकासि एवं // 11 // [ इसका सिर पीठ की ओर घुमा दिया गया है। यह निकम्मी बाहों को फैलाता है। इसकी आँखें मृत व्यक्ति के समान श्वेत हो गई हैं। मेरे पुत्र को ऐसा किसने कर दिया है ? ] ___ वहाँ खड़े हुए लोगों ने उसे बताने के लिए गाथा कही इधागमा समणो रुम्मवासी ओतल्लको पसु पिसाबको व, सङ्कार चोलं परिमुच्च कण्ठे सो ते इमं पुत्तं अकासि एवं // 12 // [यहाँ एक चीथड़ेधारो श्रमण आया। वह गंदे वस्त्र पहने था। वह पंसु-पिशाच सदृश था। वह गले में कूड़े के ढेर से उठाए वस्त्र पहने था। उसी ने तेरे पुत्र का ऐसा हाल किया है। ] उसने यह सुना तो सोचा और किसी की ऐसी सामर्थ्य नहीं है। निस्सन्देह मातङ्ग-पण्डित ही होगा / वह धीर पुरुष मैत्री भावना युक्त है। वह इतने आदमियों को कष्ट पहुंचा कर नहीं जायेगा। 'वह किस ओर गया होगा ?' पूछते हुए उसने गाथा कही