Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 154 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन वीरासन, उत्कटु कासन और गवासनः-सामान्यतः इतने ही आसन मुमुक्षु के लिए उपयोगी बतलाए। ध्यान के लिए सुखासन होना चाहिए, इस विषय में सभी आचार्य एकमत हैं, किन्तु कठोर आसनों के विषय में एकमत नहीं हैं / 'कालदोषेण सम्प्रति'-इस विचारधारा ने जैसे साधना के अन्य अनेक क्षेत्रों को प्रभावित किया, वैसे ही आसन भी उससे प्रभावित हुए और उनको करने की पद्धति जैन-परम्परा में विलुप्त-सी हो गई। गमन-योग ____ यह स्थान-योग का प्रतिपक्षी है / शक्ति-संचय और आलस्य-विजय के द्वारा इस याग का प्रतिपादन हुआ है / इसके 6 प्रकार हैं (1) अनुसूर्यगमन- तेज धूप में पूर्व से पश्चिम की ओर जाना। (2) प्रतिसूर्यगमन- पश्चिम से पूर्व की ओर जाना। (3) ऊर्ध्वगमन- पश्चिम से पूर्व की ओर जाना। (4) तिर्यसूर्यगमन- सूर्य तिरछा हो, उस समय जाना / (5) अन्यनामगमन- जहाँ अवस्थित हो, वहाँ से दूसरे गाँव में भिक्षार्थ / जाना। (6) प्रत्यागमन- दूसरे गाँव में जाकर वापस आना / आतापना-योग आतापना का अर्थ है 'सूर्य का ताप सहना'। यह सूर्य की रश्मियों या गर्मी को शरीर में संचित कर गुप्त शक्तियों को जगाने की प्रक्रिया है, इसलिए यह योग है। १-अमितगति श्रावकाचार, 8 / 49 : विनयासक्तचित्तानां, कृतिकर्मविधायिनाम् / न कार्यव्यतिरेकेण, परमासनमिष्यते // २-मूलाराधना, 3 / 224 : अणुसूरी पडिसूरी य, उड्ढसूरी य तिरियसूरी य। उभागेण य गमणं, पडिआगमणं च गंतूणं //