Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 6 १-तत्त्वविद्या 233 प्रकार तथा रिताल से लेकर पटल तक के आठ प्रकार स्पष्ट माने हैं / गोमेदक से लेकर शेष पब चौदह प्रकार होने चाहिए, किन्तु अठारह. होते हैं (उतराध्ययन, 3673-76) / इनमें से चार वस्तुओं का दारों में अन्तर्भाव होता है / वृत्तिकार इस विषय में पूर्णरूपेण असंदिग्ध नहीं है कि किसमें किसका अन्तर्भाव होना चाहिए।' स्थूल जल स्थूल जल के पाँच प्रकार हैं (1) शुद्ध उदक, (2) ओस, (3) हरतनु, (4) कुहरा और (5) हिम / स्थूल वनस्पति - स्पूल वनस्पति के दो प्रकार हैं-(१) प्रत्येक शरीरी और (2) साधारण शरीरी।' जिसके एक शरीर में एक जीव होता है, वह 'प्रत्येक शरीरी' कहलाती है। जिसके एक शरीर में अनन्त जीव होते हैं, वह 'साधारण शरीरी' कहलाती है / प्रत्येक शरीरी वनस्पति के बारह प्रकार हैं (1) वृक्ष, (4) लता, (7) लतावलय, (10) जलज, (2) गच्छ, (5) वल्ली, (8) पर्वग, (11) औषधितृण और (3) गुल्म, (6) तृण, (6) कुहुण, (12) हरितकाय / / - साधारण शरीरी वासति के अनेक प्रकार हैं ; जैसे-कन्द, मूल आदि / त्रस सृष्टि त्रस सृष्टि के छः प्रकार हैं(१) अग्नि, (4) त्रीन्द्रिय, . (2) वायु; (5) चतुरिन्द्रिय और (3) द्वीन्द्रिय, (6). पचेन्द्रिय / / १-बृहद् वृत्ति, पत्र 689 : इह च पृथि ज्यादयश्चतुरंश हरितालादयोऽष्टौ गोमेज्जकादयश्च क्वचित्कस्यचित्कथंचिदन्तर्भावाच्चतुर्दशेत्यमी मीलिताः षट्त्रिंशद् भवन्ति / २-उत्तराध्ययन, 3685 / ३-वही, 36 / 93 / ४-वही, 36 / 94,95 / ५-वही, 36 / 96-99 / ६-वही, 36 / 107,126