Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 256 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन इस श्रमण-साहित्य में भगवान् पार्श्व के चौदह पूर्वो' तथा आजीवक आदि श्रमणसम्प्रदायों के साहित्य का समावेश होता है। जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य में इस प्राचीन 'श्रमण-साहित्य' की झाँकी उपलब्ध होती है। डॉ. विन्टरनिटज ने लिखा है- 'जैन-आगम-साहित्य में प्राचीन भारत के श्रमणसाहित्य का बहुत बड़ा भाग सन्दृब्ध है / श्रमग-साहित्य का कुछ अंश बौद्ध-साहित्य तथा महाकाव्य और पुराणों में भी मिलता है।" प्रस्तुत चर्चा ____ उत्तर ध्ययन के ऐसे अनेक स्थल हैं, जिनकी तुटना बौद्ध साहित्य तथा महाभारत से होती है। पाठक के मन में सहज ही यह प्रश्न उभरता है कि इनमें पहले कौन ? इसका उत्तर प्राप्त करने के लिए सम्बन्धित साहित्य के रचना-काल का निर्णय करना मावश्यक है। बौद्ध परिष (1) प्रथम परिषद बुद्ध-परिनिर्वाण के चौथे मास में हुई। इस सभा को अध्यक्षता महाकाश्यप ने की और राजगृह में वैभारगिरि के उत्तर-भाग में स्थित सप्तपर्णी गुफा में इसकी कार्यवाही चली। इस सभा में भाग लेने वाले क्षुिओं की संख्या 500 के लगभग थी। महाकाश्यप, उपालि तथा आनन्द ने इसमें प्रधान रूप से भाग लिया। इस परिषद् के दो मुख्य परिणाम निष्पन्न हुए १-उपालि के नेतृत्व में 'विन्य' का निश्चय / २-आनन्द के नेतृत्व में 'धम्म' पाठ का निश्चय / (2) दूसरी पषिद् बुद-परिनिर्वाण के 100 वा बाद वैशाली के बालुकाराम में हुई। इसमें मात सो भिक्षुओं ने भाग लिया। इस सभा में विनय-सम्बन्धी दस बातों का निर्णय किया गया और सात सौ भिक्षुओं ने महास्थविर रेवत के नेतृत्व में 'धम्म' का संकटन किया। (3) तीसरी परिषद् बुद्ध-परिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद अशोक के समय में पाटलिपुत्र के अशोकाराम में हुई। इसके सभारति तिम्म मोग्गलिपुत्र थे / यह परिषद् 9 महीने तक चली और इसमें बुद्ध-वचनों का संगायन हुआ और तिस्स मागलिपुत्त ने 2. The Jainas in the History of Indian Literature, p. 9: In the sacred texts of the Jainas a great part of the ascetic literature of arcient India is embodied which has also left its traces in Buddhist literature as well as in the Epics and puranas.