Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 2, प्रकरण:१ कथानक संक्रमण सदृश कथानक बौद्ध-ग्रन्थों, महाभारत तथा जैन-ग्रन्थों में अनेक कथानक आंशिक रूप से समान मिलते हैं / उत्तराध्ययन में ऐसे अनेक कथानक हैं, जो बौद्ध -ग्रन्थों तथा महाभारत में भी उपलब्ध हैं / जैसे (1) उत्तराध्ययन अध्ययन 12 की कथावस्तु जातक 467 में / (2) उत्तराध्ययन अध्ययन 13 की कथावस्तु जातक 468 में / (3) उत्तराध्ययन अध्ययन 14 की कथावस्तु जातक 506 में तथा महाभारत, शान्तिपर्व, अध्ययन 175 एवं 277 में / (4) उत्तराध्ययन अध्ययन 6 की आंशिक तुलना जातक 536 तथा महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 178 एवं 276 से होती है। अब हम जैन, बौद्ध तथा वैदिक प्रसंगों को अविकल प्रस्तुत करते हुए उनकी समीक्षा करेंगे। हरिकेशबल (अध्ययन 12) मथुरा नगरी में राजा शङ्ख राज्या करते थे। उन्होंने स्थविर मुनियों के पास धर्म सुना। मन वैराग्य से भर गया। वे मुनि बने। कालक्रम से गीतार्थ हुए। एक बार ग्रामानुग्राम विहार करते हुए हस्तिनापुर आए और भिक्षा के लिए नगर की ओर चले। ग्राम प्रवेश के दो मार्ग थे। एक का नाम हुताशन-मार्ग था। वह अत्यन्त उष्ण और जलते अंगारों जैसा था। उष्णकाल में उस मार्ग से कोई नहीं आ-जा सकता था। जो कोई अनजान में उस मार्ग की ओर चला जाता, वह मर जाता था। मुनि ने निकट के एक मकान के गवाक्ष में बैठे सोमदेव ब्राह्मण से पूछा-"क्या मैं इस मार्ग से चला जाऊं ?" ब्राह्मण यह सोच कर कि इस हुताशन-मार्ग से जाते हुए मुनि को हम जलता देख सकेंगे, कहा-"हाँ, आप इसी मार्ग से जाइए।" .' 'मुनि निश्छल-भाव से उसी मार्ग से चल पड़े। वे लब्धि-सम्पन्न थे। उनके पाद-स्पर्श से मार्ग ठण्डा हो गया / ब्राह्मण ने मुनि को शान्त-भाव से धीरे-धीरे जाते देखा और वह भी उसी मार्ग से चल पड़ा। मार्ग को बर्फ जैसा ठण्डा देख उसने सोचा-अहो ! मैं पापी हूँ। अशुभ संकल्प से मैंने पापाचरण किया है। मुनि महान् हैं। इन्हीं के प्रभाव से यह अग्नि-जैसा मार्ग भी हिम-स्पर्श वाला हो गया है। वह मुनि के समीप गया। भाव-युक्त प्रणाम कर बोला-"भगवन् ! मैं पापी हूँ। मैंने पाप-कर्म किया है / उससे कैसे छुटकारा पा सकता हूँ।" मुनि ने संसार की असारता का उपदेश दिया, कषाय का विपाक बताया, धर्मानुष्ठान के फल का निरूपण किया, निर्वाण-सुख की प्रशंसा की और श्रमण-धर्म एवं