Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 270 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन इसलिए सातवें दिन दिट्टमङ्गलिका बाहर कर उसे दे दी गई। वह बोली-"स्वामी उठे। आपके घर चलें।" __ "भद्रे ! तेरे आदमियों ने मुझे अच्छी तरह पीटा है, मैं दुर्बल हूँ। मुझे उठा कर पीठ पर चढ़ा कर ले चल।" उसने वैसा किया और नगरवासियों के सामने ही नगर से निकल चण्डाल-ग्राम को गई। बोधिसत्व ने जाति-भेद की मर्यादा को अक्षुण्ण रखते हुए उसे कुछ दिन घर में रखा। फिर सोचा- "मैं केवल प्रवजित होकर ही इसे श्रेष्ठ लाभ तथा यश प्राप्त करा सकूँगा, और किसो उपाय से नहीं।" उसने उसे बुला कर कहा-"भद्र ! मैं यदि जंगल से कुछ न लाऊंगा तो हमारी जीविका नहीं चलेगी। मेरे आने तक घबराना नहीं। मैं जंगल जाऊंगा।" घर वालों को भी उसने उसका ख्याल रखने के लिए कहा। जंगल पहुंच उसने श्रमण-प्रव्रज्या ग्रहण की और अप्रमादी रह सातवें दिन आठ समापत्तियाँ और पाँच अभि प्राप्त की। 'अब दिट्ठमङ्गलिका का सहारा बन सकूँगा' सोच वह ऋद्धि-बल से जाकर चण्डाल-ग्राम के द्वार पर उतरा और दिट्ठमङ्गलिका के घर के द्वार पर पहुंचा। उसका आना सुनकर वह बाहर निकली और रोने-पीटने लगी-"स्वामी ! मुझे अनाथ करके क्यों प्रत्रजित हो गये ?" ___ "भद्रे ! चिन्ता मत कर / तेरी पूर्व सम्पत्ति से भी अधिक सम्पत्ति वाली बनाऊंगा। लेकिन क्या तू परिषद के बीच में इतना कह सकेगी कि मेरा स्वामी मातङ्ग नहीं है, महा ब्रह्मा है ?" "स्वामी ! हाँ कह सकूँगी।" "तो अब यदि कोई पूछे कि तेरा स्वामी कहाँ है, तो कहना ब्रह्मलोक गया है ? "कब आयेगा ?" पूछे तो उत्तर देना कि आज से सातवें दिन पूर्णिमा के चन्द्रमा को तोड़ कर आयेगा। उसे यह कह वह हिमालय को ही चला गया। दिट्ठमङ्गलिका ने भी वाराणसी में परिषद के बीच जहाँ तहाँ वैसे ही कहा / लोगों ने विश्वास कर लिया"वह महा ब्रह्मा है, इसलिए दिट्ठमङ्गलिका के पास नहीं जाता है, यह ऐसा होगा।" बोधिसत्व ने भी पूर्णिमा के दिन जब चन्द्रमा अपने मार्ग के मध्य में था, ब्रह्मा का रूप धारण कर सारे काशी राष्ट्र तथा बारह योजन की वाराणसी को एक-प्रकाश कर, चन्द्रमा को फोड़ नीचे उतर, वाराणसी के ऊपर तीन बार चक्कर काटा ! वह जनता द्वारा गन्ध माला आदि से पूजित हो चण्डाल-ग्राम की ओर गया। ब्रह्म-भक्तों ने इकट्ठे हो चण्डाल-ग्राम पहुँच, दिवमङ्गलिका का घर शुद्ध वस्त्रों से छा दिया। भूमि को चार प्रकार की सुगन्धियों से लीप दिया। फूल बिखेर दिये। धूनी दी। वस्त्रों का चंदवा तान महाशयन बिछाया। सुगन्धित प्रदीप जला द्वार पर चाँदी के वर्ण की बालू बिखेरी। फूल बिखेरे और ध्वजायें बाँधी। इस प्रकार के अलंकृत घर में बोधिसत्व उतरे