Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 258 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन विलियम्स' आदि-आदि ने महाभारत का निर्माण-काल ई० पू० 500 से ईसवी सन् की चौथी शताब्दी तक माना है। चिन्तामणि विनायक वैद्य उपलब्ध महाभारत को सौति द्वारा परिवर्द्धित मानते हैं और उसके काल की सीमा ई० पू० 200 से ई० पू० 400 तक मानते हैं / यह माना जाता है कि मूल 'भारत' में औपदेशिक सामग्री नहीं थी। वह एकान्ततः ऐतिहासिक ग्रन्थ था। आज जो उपदेश उसमें संकलित हैं, वह समय-समय पर जोड़ा गया है / उसका मौलिक अंश सारे ग्रन्थ का पाँचवाँ भाग मात्र था। यही मूल 'भारत' है। जैन-आगम अनुयोगद्वार ( ई० सन् पहली शताब्दी) तथा नन्दी (ई० सन् तीसरी या पाँचवी शताब्दी ) में भारत का नाम आया है। भारत का नाम 'जय' भी रहा है-ऐसी भी मान्यता है / / महाभारत के तीन रूप मिलते हैं (1) मूल भारत में 88004 या 12000 श्लोक थे। वैशम्पायन ने चौबीस हजार किए और अन्त में सौति ने शौनक को सुनाया। उस समय शौनक द्वादश वर्षीय यज्ञ कर रहे थे। उन्होंने सौति से अनेक प्रश्न किए और सौति ने उन प्रश्नों का समाधान किया। उन सभी प्रश्नों और उतरों का इसमें समावेश कर दिया गया। 'भारत' की श्लोक संख्या एक लाख हो गई। (2) रायचौधरी ने यह माना है कि मूल 'भारत' चौबीस हजार श्लोक का था / तदनन्तर उसमें अनेक उपाख्यान, प्रचलित साहित्य की बहुविध सामग्री आदि का प्रक्षेप होता रहा / यह प्रक्षेप लगभग ईसा सन् की पाँचवीं शताब्दी तक होता रहा है। (3) आर० सी० मजूमदार ने माना है कि महाभारत किसी एक व्यक्ति या एक काल की रचना नहीं है। यह ईसा पूर्व दूसरी से चौथो शताब्दी की रचना होनी चाहिए। ईसा की तीसरी-चौथी शताब्दी तक इसमें प्रक्षेप होते रहे हैं / 1-Indian Wisdom, p. 317. २-महाभारत मीमांसा, पृ० 140-152 / ३-महाभारतः (क) 'जयो नामेतिहासोऽयम्' / (ख) प्रथम एवं अन्य अनेक पर्वो का प्रारम्भ इस श्लोक से होता हैनारायणं नमस्कृत्य, नरं चैव नरोत्तमम् / देवी सरस्वतीं व्यासं, ततो जयमुदीरयेत् // ४-महाभारत, आदिपर्व, 181: / अष्टौ श्लोकसहस्राणि, अष्टौ श्लोकशतानि च / अहं वेद्मि शुको वेत्ति, संजयो वेत्ति वा न वा // 4. Studies in Indian Antiquities, p. 281-282. 6. Ancient India, p. 195.