Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 234 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन अग्नि और वायु की गति अभिप्रायपूर्वक नहीं होती, इसलिए वे केवल गमन करने वाले त्रस हैं / द्वीन्द्रिय आदि अभिप्रायपूर्वक गमन करने वाले त्रस हैं / अग्नि और वायु अग्नि और वायु दोनों दो-दो प्रकार के होते हैं-सूक्ष्म और स्थल / सूक्ष्म जीव समूचे लोक में व्याप्त रहते हैं और स्थूल जीव लोक के अमुक-अमुक भाग में है।' स्थल अग्निकायिक जीवों के अनेक भेद होते हैं, जैसे--अंगार, मुर्मुर, शुद्ध अग्नि, अर्चि, ज्वाला, उल्का, विद्युत् आदि / स्थल वायुकायिक जीवों के भेद ये हैं:-(१) उत्कलिका, (2) मण्ड लिका, (3) धनवात, (4) गुञ्जावात, (5) शुद्धवात और (6) संवर्तकवात / अभिप्रायपूर्वक गति करने वाले त्रस जिन किन्हीं प्राणियों में सामने जाना, पीछे हटना, संकुचित होना, फैलना, शब्द करना, इधर-उधर जाना, भयभीत होना, दौड़ना-ये क्रियाएं हैं और आगति एवं गति के विज्ञाता हैं, वे सब त्रस हैं।४ इस परिभाषा के अनुसार अस जीवों के चार प्रकार हैं--(१) द्वीन्द्रिय, (2) त्रीन्द्रिय, (3) चतुरिन्द्रिय और (4) पंचेन्द्रिय / 5 ये स्थूल ही होते हैं, इनमें सूक्ष्म और स्थूल का विभाग नहीं है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, और चतुरिन्द्रिय जीव सम्मूर्छनज ही होते हैं / पंचेन्द्रिय जोव सम्मूच्छं पज और गर्भज-दोनों प्रकार के होते हैं / गति की दृष्टि से पंचेन्द्रिय चार प्रकार के हैं-(१) नेरयिक, (2) तिर्यञ्च, (3) मनुष्य और (4) देव / पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च तीन प्रकार के होते हैं--(१) जलचर, (2) स्थलचर और (3) खेचर / / जलचर सृष्टि के मुख्य प्रकार मत्स्य, कच्छा, ग्राह, मगर और शुंशुमार आदि हैं।" १-उत्तराध्ययन, 36 / 111,120 / २-वही, 36 / 100,109 / ३-वही, 363118-119 / ४-दशवकालिक, 4 सूत्र 9 / ५-उत्तराध्ययन, 36 / 126 / ६-वही, 363171 / ७-वही, 363172 /