Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 248 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (5) स्पश (1) कृष्ण- गाय की जीभ से अनन्त गुना कर्कश (2) नील(३) कापोत(४) तेजस्- नवनीत से अनन्त गुना मृदु (5) पद्म (6) शुक्ल' - (6) परिणाम (1) कृष्ण- जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट (2) नील(३) कापोत(४) तेजस- जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट (5) पद्म(६) शुक्ल२. जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट परिणामों के तारतम्य पर विचार करने से प्रत्येक लेश्या के नौ-नो परिणाम होते हैं (1) जघन्य- जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट (2) मध्यम- जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट (3) उत्कृष्ट- जघन्य. मध्यम. उत्कष्ट इसी प्रकार सात परिणामों का जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के त्रिक से गुणन करने पर विकल्पों की वृद्धि होती है / जैसे-६४३=२७, 274381, 8143243 / इस प्रकार मानसिक परिणामों की तरतमता के आधार पर प्रत्येक लेश्या के अनेक परिणमन होते हैं। (7) लक्षण(१) कृष्ण:-मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग-इन पाँच आस्रवों में प्रवृत्त होना, मन, वचन और काया का संयम न करना, जीव हिंसा में रत रहना, तीव्र आरम्भ में संलग्न रहना, प्रकृति की क्षुद्रता, बिना विचारे काम करना, क्रूर होना और इन्द्रियों पर विजय न पाना। १-उत्तराध्ययन, 34 / 18-19 / २-वही, 34 / 20 / ३-वही, 34 / 21-22 /