Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ प्रकरण : आठवाँ १-धर्म की धारणा के हेतु संसार के मूल बिन्दु दो हैं—(१) जन्म और (2) मृत्यु / ये दोनों प्रत्यक्ष हैं। किन्तु इनके हेतु हमारे प्रत्यक्ष नहीं हैं। इसीलिए उनकी एषणा के लिए हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। धर्म की विचारणा का आदि-बिन्दु यही है। . जैसे अण्डा बगुली से उत्पन्न होता है और बगुली अण्डे से उत्पन्न होती है, उसी प्रकार तृष्णा मोह से उत्पन्न होती है और मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है। राग और द्वेष-ये दोनों कर्म-बीज हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होता है। वह जन्म और मृत्यु का मूल हेतु है और यह जन्म-मरण की परम्परा ही दुःख है / ' दुःखवादी दृष्टिकोण ___धर्म की धारणा के अनेक हेतु हैं / उनमें एक मुख्य हेतु रहा है-दुःखवाद / अनात्मवाद के चौराहे पर खड़े होकर जिन्होंने देखा, उन्होंने कहा—संसार सुखमय है। जिन्होंने अध्यात्म की खिड़की से झाँका, उन्होंने कहा-संसार दुःखमय है। जन्म दुःख है, जरा दुःख है, रोग दुःख है, मृत्यु दुःख है, और क्या, यह समूचा संसार ही दुःख है। यह अभिमत केवल भगवान् महावीर व उनके पूर्ववर्ती तीर्थङ्करों का ही नहीं रहा, महावीर के समकालीन अन्य धर्माचार्यों का अभिमत भी यही था। महात्मा बुद्ध ने इन्हीं स्वरों में कहा था-"पैदा होना दुःख है, बूढ़ा होना दुःख है, व्याधि दुःख है, मरना दुःख है।"3 ___ महावीर और बुद्ध-ये दोनों श्रमण-परम्परा के प्रधान शास्ता थे। उन्होंने जो कहा, वह महर्षि कपिल के सांख्य-दर्शन और पतञ्जलि५ के योगसूत्र में भी प्राप्त है। कुछ विद्वानों का अभिमत है कि उपनिषद्-परम्परा सुखवादी है और श्रमण-परम्परा दुःखवादी। यदि यह सही है तो सांख्य और योगदर्शन सहज ही श्रमण-परम्परा की परिधि में आ जाते हैं। १-उत्तराध्ययन, 32 // 6-7 / २-वही, 19 / 15 / ३-महावग्ग, 16 / 15 / ४-सांख्य दर्शन, 11H अत्र त्रिविधदुःखात्यन्तमिवृत्तिरत्यन्त पुरुषार्थः / ५-पातंजल योगसूत्र, 2 / 14-15: ते लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात् // परिणामतापसंस्कारदुःखैर्गुणवृत्तिविरोधाच दुःखमेव सर्व विवेकिनः //