Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 8 ३-श्रामण्य और काय-क्लेश 221 हम इस बातको सदा याद रखें कि हमारा पहला चरण ही अन्तिम लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता। ४-श्रामण्य और काय-क्लेश कुछ लोगों का अभिमत है कि बाह्य निमित्तों के बचाव की प्रक्रिया में श्रमण-जीवन जटिल बन गया। सहज सुविधाएं नष्ट हो गई, उनका स्थान काय-क्लेश ने ले लिया। क्या यह सच है कि श्रमण-जीवन बहुत ही कठोर है ? हमारे अभिमत मे ऐसा नहीं है। भगवान् पार्श्व और भगवान् महावार-दोनों ने अज्ञानपूर्ण काय-क्लेश का प्रतिवाद किया / अज्ञानी करोड़ों वर्षों के काय-क्लेश से जिस कर्म का क्षोण करता है, उसे ज्ञानी एक क्षण में कर डालता है। यह सही है कि मुनि-जीवन में काय-क्लेश का सर्वथा अस्वीकार नहीं है। फिर भी जितना महत्व संवर, गुति, ध्यान आदि का है, उतना कायक्लेश का नहीं है / कई आचार्यों ने समय-समय पर काय-क्लेश को कुछ अतिरिक्त महत्त्व दिया है, किन्तु जैन वाङ्मय की समग्र चिन्तनधारा में वह प्राप्त नहीं हाता / आचारांग सूत्र में कहा गया है-"काया को कसो, उसे जीर्ण करो", किन्तु वह एकान्त वचन नहीं है। आगम सूत्रों में कुछ मुनियों के कठार तप का उल्लेख है। उसे पढ़ कर सहज ही यह धारणा बन जातो है कि मुनि-जीवन कठोर तपस्या का जीवन है / कुछ विद्वानों का अभिमत है कि जैन-साधना प्रारम्भ में कठार ही थी, फिर बौद्धों की मध्यम प्रतिपदा से प्रभावित हो कुछ मृदु बन गई / बौद्ध धर्म के उत्कर्ष काल में जैनपरम्परा उससे प्रभावित नहीं हुई, यह ता नहीं कहा जा सकता। किन्तु इसे भी अमान्य नहीं किया जा सकता कि जैन-साधना में मृदुता और कठोरता का सामञ्जस्य आरम्भ से हो रहा है। साधना के मुख्य अंग दो हैं-(१) संवर और (2) तपस्या / (1) संवर के पाँच प्रकार हैं-(१) सम्यक्त्व, (2) व्रत, (3) अप्रमाद, (4) * अकषाय और (5) अयोग। इनकी साधना मृदु है-कायक्लेश-रहित है। . (2) तपस्या के बारह प्रकार हैं(१) अनशन, (7) प्रायश्चित्त, (2) ऊोदरी, (8) विनय, (3) भिक्षाचरी, (6) वैयावृत्त्य, (4) रस-परित्याग, (10) स्वाध्याय, (5) काय-क्लेश, (11) ध्यान और (6) प्रतिसंलीनता, (12) व्युत्सर्ग।