Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ट 1, प्रकरण : 7 २-योग 163 उसका प्राङ्गण सम हो या विषम, वह गाँव के बाह्य-भाग में हो या मध्य-भाग में, शीत हो या ऊष्ण / विविक्त-शय्या के छह प्रकार ये हैं--(१) शून्य-गृह, (2) गिरि-गुफा, (3) वृक्ष-मूल, (4) आगन्तुक-आगार (=विश्राम-गृह), (5) देव-कुल, अकृत्रिम शिला-गृह और (6) कूट-गृह / विविक्त शय्या में रहने से निम्न दोषों से सहज ही बचाव हो जाता है-(१) कलह, (2) बोल (शब्द बहुलता), (3) झंझा (संक्लेश), (4) व्यामोह, (5) सांकर्य (असंयमियों के साथ मिश्रण), (6) ममत्व तथा (7) ध्यान और स्वाध्याय का व्याघात / ' बाह्य-तप के प्रयोजन (1) अनशन के प्रयोजन (क) संयम-प्राप्ति / (ख) राग-नाश / (ग) कर्म-मल विशोधन / (घ) सध्यान की प्राप्ति / (ङ) शास्त्राभ्यास / (2) अवमौदर्य के प्रयोजन (क) संयम में सावधानता। (ख) वात, पित्त, श्लेष्म आदि दोषों का उपशमन / (ग) ज्ञान, ध्यान आदि की सिद्धि / (3) वृत्तिसंक्षेप के प्रयोजन (क) भोजन सम्बन्धी आशा पर अंकुश / (ख) भोजन सम्बन्धी संकल्प-विकल्प और चिन्ता का नियंत्रण / (4) रस-परित्याग के प्रयोजन (क) इन्द्रिय-निग्रह। (ख) निद्रा-विजय / (ग) स्वाध्याय-ध्यान की सिद्धि / (5) विविक्त-शय्या के प्रयोजन (क) बाधाओं से मुक्ति। (ख) ब्रह्मचर्य सिद्धि / (ग) स्वाध्याय, ध्यान की सिद्धि / १-मूलाराधना, 3 / 228,229,231,232 /