Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 २-योग 175 धर्म्य ध्यान के चार आलम्बन हैं (क) वाचना-पढ़ाना। (ख) प्रतिप्रच्छना-शंका-निवारण के लिए प्रश्न करना। (ग) परिवर्तना--पुनरावर्तन करना। (घ) अनुप्रेक्षा-अर्थ का चिन्तन करना। धर्म्य ध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ हैं (क) एकत्व-अनुप्रेक्षा-अकेलेपन का चिन्तन करना / (ख) अनित्य-अनुप्रेक्षा-पदार्थों की अनित्यता का चिन्तन करना। (ग) अशरण-अनुप्रेक्षा-अशरण दशा का चिन्तन करना। (घ) संसार-अनुप्रेक्षा---संसार-परिभ्रमण का चिन्तन करना। (4) शुक्ल ध्यान-चेतना की सहज ( उपाधि रहित ) परिणति को 'शुक्ल-ध्यान' कहा जाता है। उसके चार प्रकार हैं (क) पृथक्त्व-वितर्क-सविचारी। (ख) एकत्व-वितर्क-अविचारी। (ग) सूक्ष्म-क्रिय-अप्रतिपाति / (घ) समुच्छिन्न-क्रिय-अनिवृत्ति / ध्यान के विषय में द्रव्य और उसके पर्याय हैं। ध्यान दो प्रकार का होता हैसालम्बन और निरालम्बन / ध्यान में सामग्री का परिवर्तन भी होता है और नहीं भी होता / वह दो दृष्टियों से होता है-भेद-दृष्टि से और अभेद-दृष्टि से। जब एक द्रव्य के अनेक पर्यायों का अनेक दृष्टियों-नयों से चिन्तन किया जाता है और पूर्व-श्रुत का आलम्बन लिया जाता है तथा शब्द से अर्थ में और अर्थ से शब्द में एवं मन, वचन और काया में से एक दूसरे में संक्रमण किया जाता है, शुक्ल-ध्यान की इस स्थिति को 'पृथकत्व-वितर्क-सविचारी' कहा जाता है। ___जब एक द्रव्य के किसी एक पर्याय का अभेद-दृष्टि से चिन्तन किया जाता है और पूर्वे-श्रुत का आलम्बन लिया जाता है तथा जहाँ शब्द, अर्थ एवं मन-वचन-काया में से एक दूसरे में संक्रमण किया जाता है, शुक्ल-ध्यान की उस स्थिति को 'एकत्व-वितर्कअविचारी' कहा जाता है। ___ जब मन और वाणी के योग का पूर्ण निरोध हो जाता है और काया के योग का पूर्ण निरोध नहीं होता-श्वासोच्छवास जैसी सूक्ष्म-क्रिया शेष रहती है, उस अवस्था को 'सूक्ष्म-क्रिय' कहा जाता है / इसका पतन नहीं होता, इसलिए यह अप्रतिपाति है। जब सूक्ष्म क्रिया का भी निरोध हो जाता है, उस अवस्था को 'समुच्छिन्न-क्रिय' कहा जाता है / इसका निवर्तन नहीं होता, इसलिए यह अनिवृत्ति है।