Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 156 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (2) जघन्य-मध्यम-एक पादिका / ' एक पैर के बल पर खड़े रह कर ताप सहना। (3) जघन्य-जघन्य-समपादिका / 2 दोनों पैरों को समश्रेणि में रख, खड़े-खड़े ताप सहना। तपोयोग .तप के दो प्रकार हैं-बाह्य और आभ्यन्तर / दोनों के छह-छह प्रकार हैं / बाह्यतप के छह प्रकार ये हैं (1) अनशन, (2) अवमौदर्य, (3) भिक्षाचरी ( वृत्ति संक्षेप ), (4) रस-परित्याग, (5) काय-क्लेश और (6) प्रतिसंलीनता (विविक्त-शय्या)। (1) अनशन अनशन के दो प्रकार हैं (1) इत्वरिक- अल्पकालिक और (2) यावत्कथित- मरणकालभावी। . मुनि के लिए आहार करना और न करना दोनों सहेतुक हैं / जब तक अपना शरीर ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना में सहायक रहे, उसके द्वारा नए-नए विकास उपलब्ध हों, तब तक वह शरीर का पोषण करे। जब यह लगे कि इस शरीर के द्वारा कोई विशेष उपलब्धि नहीं हो रही है-ज्ञान, दर्शन और चारित्र का नया उन्मेष नहीं आ रहा है, तब शरीर की उपेक्षा कर दे-आहार का परित्याग कर दे।४ यह सिद्धान्त १-बृहत्कल्प भाज्य, गाथा 5948 ; वृत्ति : उत्थितस्यैकपादेनावस्थानम् / २-वही, गाथा 5948, वृत्ति : __समतलाभ्यां पादाभ्यां स्थित्वा यद् ऊर्ध्वावस्थितैराताज्यते // ३-उत्तराध्ययन, 26 // 31-34 / ४-वही, 4 // 7 // लाभान्तरे जीविय वूहइत्ता पच्छा परिन्नाय मलावधंसी। . .