Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 144 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन / (1) उत्कटुका--- उकडू आसन--पुतों को ऊंचा रख कर पैरों के बल पर बेठना / / (2) गोदोहिका- गाय को दुहते समय बैठने का आसन / 2 एडियों को उठा कर पंजे के बल पर बैठना। .. (3) समपादपुता-पैरों और पुतों को सटा कर भूमि पर बैठना / / (4) पर्यङ्का- पैरों को मोड़ पिंडलियों के आर जाँधों को रख कर बैठना और एक हस्ततल पर दूसरा हस्ततल जमा नाभि के पास रखना। (5) अर्द्ध-पर्यङ्का- एक पैर को मोड़, पिंडली के ऊार जाँघ को रखना और दूसरे पैर के पंजों को भूमि पर टिका कर घुटने को ऊपर की ओर रखना। बृहत्कल्प भाष्य में निषद्या के पाँच प्रकार कुछ परिवर्तन के साथ उपलब्ध होते हैं (1) समपाद पुता। (2) गोनिषधिका- गाय की तरह बैठना / / (3) हस्तिशुण्डिका-पुतों के बल पर बैठ कर एक पैर को ऊंचा रखना। (4) पर्यङ्का। (5) अर्द्ध-पर्यङ्का। १-(क) स्थानांग, 5 // 400 वृत्ति : आसनालग्नपुतः पादाभ्यामस्थित उत्कुटुक स्तस्य या सा उस्कुटुका। (ख) मूलाराधना, 3 / 224, वृत्ति / २-स्थानांग, 1400 वृत्ति : गोर्दोहनं गोदोहिका तद्वद्या याऽसौ गोदोहिका। ३-मूलाराधना, 3 / 224, वृत्ति : गोदोहगा-गोर्दोहे आसन मिव पाणिद्वय मुक्षिप्याग्रपादाम्यामासनम् / ४-स्थानांग, 52400, वृत्ति : समौ-समतया भूलग्नौ पादौ च पुतौ च यस्यां सा समपादपुता। ५-बृहत्कल्प भाज्य, गाथा 5953, वृत्ति : निषद्या नाम उपवेशन विशेषाः, ताः पञ्चविधाः, तद्यया-समपावता गोनिषधिका हस्तिशुण्डि का पर्यकार्धपर्यङ्का चेति / ६-वही, गाथा 5953, वृत्ति : यस्यां तु गोरिवोपवेशनं सा गोनिषधिका। ७-वही, गाथा 5953, वृत्तिः / यत्र पुताभ्यामुपविश्यकं पावमुत्पाटयति सा हस्तिशुण्डिका।