Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 122 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन मूल्य नहीं है। एक तीर्थङ्कर ने जो कहा, उसका निरूपण दूसरा तीर्थङ्कर करे तो वस्तुतः वह तीर्थङ्कर ही नहीं होता। जिस का मार्ग पूर्व तीर्थङ्कर से भिन्न होता है, यानि सर्वथा संदृश नहीं होता, उसी को 'तीर्थङ्कर' कहा जाता है। हमारी यह स्थापना निराधार नहीं है। इसकी यथार्थता प्रमाणित करने के लिए हमें तीर्थङ्करों के शासन-भेद का अध्ययन प्रस्तुत करना होगा। २-पार्श्व और महावीर का शासन-भेद भगवान् पार्श्व और भगवान् महावीर के शासन-भेद का विचार हम निम्न तथ्यों के आधार पर करेंगे१. भगवान् पार्श्व की धर्म-सामाचारी भगवान महावीर की धर्म-सामाचारी (1) चातुर्याम (1) पाँच महाव्रत (2) सामायिक चारित्र (2) छेदोपस्थापनीय चारित्र (3) रात्रि भोजन न करना उत्तर गुण (3) रात्रि भोजन न करना मूल गुण (4) सचेल (4) अचेल 2. प्रतिक्रमण प्रतिक्रमण (5) दोष होने पर प्रतिक्रमण (5) नियमतः दो बार प्रतिक्रमण 3. औद्देशिक औद्देशिक (6) एक साधु के लिए बने आहार का दूसरे (6) एक साधु के लिए बने आहार का द्वारा ग्रहण दूसरे द्वारा वर्जन 4. राजपिण्ड राजपिण्ड (7) राजपिण्ड का ग्रहण (7) राजपिण्ड का वर्जन 5. मासकल्प मासकल्प (8) मासकल्प का नियम न होने पर जीवन- (8) मासकल्प का नियम एक स्थान में भर एक गाँव में रहने का विधान। एक मास से अधिक न रहनेका कीचड़ और जीव-जन्तु न हो उस स्थिति विधान / में वर्षा-काल में भी विहार का विधान।