Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 6 २-पार्श्व और महावीर का शासन-भेद से यही प्रमाणित होता है कि आजीवक-श्रमण दिगम्बर श्रमणों में विलीन हो गए / ' आजीवक नग्नत्व के प्रबल समर्थक थे। उनके विलय होने के पश्चात् सम्भव है कि दिगम्बर-परम्परा में भी अचेलता का आग्रह हो गया। यदि आग्रह न हो तो सचेल और अचेल-इन दोनों अवस्थाओं का सुन्दर सामञ्जस्य बिठाया जा सकता है, जैसा कि भगवान महावीर ने बिठाया था। (5) प्रतिक्रमण भगवान पार्श्व के शिष्यों के लिए दोनों सन्ध्याओं में प्रतिक्रमण करना अनिवार्य नहीं था / जब कोई दोषाचरण हो जाता, तब वे उसका प्रतिक्रमण कर लेते / भगवान महावीर ने आने शिष्यों के लिए दोनों संध्याओं में प्रतिक्रमण करना अनिवार्य कर दिया, भले फिर कोई दोषाचरण हुआ हो या न हुआ हो / ' (6) अवस्थित और अनवस्थित कल्प भगवान् पार्श्व और भगवान् महावीर के शासन-भेद का इतिहास दस कल्पों में मिलता है। उनमें से चातुर्याम धर्म, अचेलता, प्रतिक्रमण पर हम एक दृष्टि डाल चुके हैं। भगवान् पार्श्व के शिष्यों के लिए-१-शय्यातर-पिण्ड (उपाश्रय दाता के घर का भाहार) न लेना, २-चातुर्याम-धर्म का पालन करना, ३-पुरुष को ज्येष्ठ मानना, ४-दीक्षा पर्याय में बड़े साधुओं को वंदना करना-ये चार कल्प अवस्थित थे। १-अचेलता, 2. औद्देशिक, ३-प्रतिक्रमण, ४-राजपिण्ड, ५-मासकल्प, ६-पर्युषण कल्प-ये छहों कल्प अनवस्थित थे-ऐच्छिक थे / भगवान् महावीर के शिष्यों के लिए ये सभी कल्प अवस्थित थे, अनिवार्य थे / परिहार विशुद्ध चारित्र भी भगवान महावीर की देन थी। इसे छेदोपस्थापनीय चारित्र की भाँति 'अवस्थित कल्पी' कहा गया है।४ * -- १-बुद्धिस्ट स्टडीज, पृ० 15 / २-(क) आवश्यक नियुक्ति, 1244 / (ख) मूलाचार 7 / 125-126 / ३-भगवती, 25 / 71787 : सामाइय संजमे णं भंते ! किं ठियकप्पे होज्जा अट्ठियकप्पे होज्जा ? गोयमा ठियकप्पे वा होज्जा अट्ठियकप्पे वा होज्जा, छेदोवट्ठावणियसंजए पुच्छा, गोयमा ! ठियकप्पे होज्जा. नो अट्ठियकप्पे होज्जा। ४-भगवती, 2517787 /