Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड : 1, प्रकरण : 7 . . .. २-योग 141 आश्रव-भावना आश्रव-कर्म-बन्धन के हेतु कार भी हैं, नीचे भी हैं और मध्य में भी हैं।' संवर और निर्जरा भावना नाले बन्द कर देने व अन्दर के जल को उलीच-उलोच कर बाहर निकाल देने पर जैस महातालाब सूख जाता है, वैसे ही आश्रव-द्वारों को बन्द कर देने और पूर्व संचित कर्मों को तपस्या के द्वारा निर्जीण करने पर आत्मा पुद्गल-मुक्त हो जाती है। लोक-भावना जो लोकदर्शी है, वह लोक के अधोभाग को भी जानता है, ऊर्ध्व-भाग को भी जानता है और तिर्यग-भाग को भी जानता है। बोधि-दुर्लभ-भावना ___ जागो ! क्यों नहीं जाग रहे हो ? बोधि बहुत दुर्लभ है / 4 धर्म-भावना धर्म-जीवन का पाथेय है। यात्री के पास पाथेय होता है, तो उसकी यात्रा सुख से सम्पन्न हो जाती है। इसी प्रकार जिसके पास धर्म का पाथेय होता है, उसकी जीवन यात्राएं सुख से सम्पन्न होती हैं।" मैत्री-भावना सब जीव मेरे मित्र हैं / प्रमोद-भावना तुम्हारा आर्जव आश्चर्यकारी है और आश्चर्यकारी है तुम्हारा मार्दव / उत्तम है तुम्हारी क्षमा और उत्तम है तुम्हारी मुक्ति।' कारुण्य भावना बन्धन से मुक्त करने का प्रयत्ल और चिन्तन / ' १-आचारांग, 115 / 6 / 170 / २-उत्तराध्ययन, 3015-6 / ३-आचारांग, 12 / 5 / ४-सूत्रकृताङ्ग, 112 / 11 / ५-उत्तराध्ययन, 19 / 18-21 / ६-वही, 6 / 2 / ७-बही, 9 / 57 / -वही, 13 / 19 /