Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 १-साधना-पद्धति अप्रकटित होती हैं, तब तक हर व्यक्ति के लिए अपनी आत्मा साध्य होती है और जब सम्यक्त्व मल रहित, ज्ञान अनावृत्त और वीतरागता प्रकट होती है, तब वह स्वयं सिद्ध हो जाती है। साध्य की सिद्धि के लिए जिन हेतुओं का आलम्बन लिया जाता है, उन्हें 'साधन' और उनके अभ्यास क्रम को 'साधना' कहा जाता है। साधन मोक्ष के साधन चार हैं-(१) ज्ञान, (2) दर्शन, (2) चारित्र और (4) तप / ' ज्ञान से सत्य जाना जाता है और दर्शन (सम्यक्त्व) से सत्य के प्रति श्रद्धा होती है, इसलिए ये दोनों सत्य की प्राप्ति के साधन हैं। चारित्र से आने वाले कर्मों का निरोध होता है और तप से पूर्व संचित कर्म क्षीण होते हैं, इसलिए ये दोनों सत्य की उपलब्धि के साधन हैं / ये चारों समुदित रूप से मोक्ष या आत्मोपलब्धि के साधन हैं। साधना मोक्ष के साधन चार हैं, इसलिए उसकी साधना के भी मुख्य प्रकार चार हैं-(१) ज्ञान की साधना, (2) दर्शन की साधना, (3) चारित्र की साधना और (4) तप की साधना। (1) ज्ञान की साधना के पाँच अंग हैं(१) वाचना पढ़ाना। (2) प्रतिपृच्छा--- प्रश्न पूछना। (3) परिवर्तना- पुनरावृत्ति करना। (4) अनुप्रेक्षा- चिन्तन करना। (5) धर्म कथा- धर्म-चर्चा करना। ज्ञान की आराधना करने से अज्ञान क्षीण होता है / ज्ञान-सम्पन्न जीव संसार में विनष्ट नहीं होता। जिस प्रकार धागा पिरोई सूई गिरने पर भी गुम नहीं होती, उसी प्रकार ज्ञान-युक्त. जोवन संसार में विलुप्त नहीं होता। इस प्रकार भगवान महावीर ने ज्ञान का उतना ही समर्थन किया, जितना कि चारित्र का। इसलिए जैन-दर्शन को हम केवल ज्ञान-योग का समर्थक नहीं कह सकते। १-उत्तराध्ययन, 28 / 3 / २-वही, 28 // 35 // ३-वही, 29 / 16-24 / ४-वही, 29 / 59 /