Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 130 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . .. आचारांग में भी एक शाटक रखने का उल्लेख है।' अंगुत्तरनिकाय में निर्ग्रन्थों के नग्न रूप को लक्षित करके ही उन्हें 'अह्रीक' कहा गया है। आचारांग में निर्ग्रन्थों के लिए अचेल रहने का भी विधान है। विष्णुपुराण में जैन-साधुओं के निर्वस्त्र और सवस्त्र-दोनों रूपों का उल्लेख मिलता है। ____ इन सभी उल्लेखों से यह जान पड़ता है कि भगवान महावीर के शिष्य सचेल और अचेल-इन दोनों अवस्थाओं में रहते थे। फिर भी अचेल अवस्था को अधिक महत्त्व दिया गया, इसीलिए केशी के शिष्यों के मन में उसके प्रति एक वितर्क उत्पन्न हुआ था। प्रारम्भ में अचेल शब्द का अर्थ निर्वस्त्र ही रहा होगा और दिगम्बर, श्वेताम्बर संघर्षकाल में उसका अर्थ 'अल्प वस्त्र वाला' या 'मलिन वस्त्र वाला' हुआ होगा अथवा एक वस्त्रधारी निर्ग्रन्थों के लिए भी अचेल का प्रयोग हुआ होगा। दिगम्बर-परम्परा ने निर्वस्त्र रहने का एकान्तिक आग्रह किया और श्वेताम्बर-परम्परा ने निर्वस्त्र रहने की स्थिति के विच्छेद की घोषणा की। इस प्रकार सचेल और अचेल का प्रश्न, भगवान् महावीर ने जिसको समाहित किया था, आगे चल कर विवादास्पद बन गया। यह विवाद अधिक उग्र तब बना, जब आजीवक श्रमण दिगम्बरों में विलीन हो रहे थे। तामिल काव्य 'मणिमेखले' में जैन-श्रमणों को निम्रन्थ और आजीवक-इन दो भागों में विभक्त किया गया है। भगवान् महावीर के काल में आजीवक एक स्वतंत्र सम्प्रदाय था। अशोक और दशरथ के 'बराबर' तथा 'नागार्जुनी गुहा-लेखों' से उसके अस्तित्व की जानकारी मिलती है। उनके श्रमणों को गुहाएं दान में दी गई थी।५ सम्भवतः ई० स० के आरम्भ से आजीवक मत का उल्लेख प्रशस्तियों में नहीं मिलता। डॉ. वासुदेव उपाध्याय ने संभावना की है कि आजीवक ब्राह्मण मत में विलीन हो गए।६ किन्तु मणिमेखले १-आचारांग, 1 / 8 / 4 / 52 : अदुवा एग साडे। २-अंगुत्तरनिकाय, 1088, भाग 4, पृ० 218 : अहिरिका भिक्खवे निग्गण्ठा / ३-आचारांग, 108 / 4 / 53 : अदुवा श्रचेले। ४-विष्णुपुराण, अंश 3, अध्याय 18, श्लोक 10 : दिग्वाससामयं धर्मों, धर्मोऽयं बहुवासमाम् / ५-प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, खण्ड 2, पृ० 22 / ६-वही, खण्ड 1, पृ. 126 /