Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ 128 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (3) अचौर्य त्रि-भोजन-विरमण१ . आचार्य वट्टकेर ने मूलगुण 28 माने हैंपाँच महावत अस्नान पाँच समितियाँ भूमिशयन पाँच इन्द्रिय-विजय दन्तघर्षन का वर्जन षड् आवश्यक स्थिति भोजन केशलोच एक-भक्त / अचेलकता मूलगुणों की संख्या सब तीर्थङ्करों के शासन में समान नहीं रही, इसका समर्थन भगवान् महावीर के एक निम्न प्रवचन से होता है-- "आर्यो !...मैंने पाँच महाव्रतात्मक, सप्रतिक्रमण और अचेल धर्म का निरूपण किया है। आर्यो !... मैंने नग्नभाव, मुण्डभाव, अस्नान, दन्तप्रक्षालन-वर्जन, छत्र-वर्जन, पादुकावर्जन, भूमि-शय्या, केश-लोच आदि का निरूपण किया है।'' भगवान् महावीर के जो विशेष विधान हैं, उनका लम्बा विवरण स्थानांग, 6 / 663 (4) सचेल और अचेल गौतम और केशी के शिष्यों के मन में एक वितर्क उठा था "महामुनि वर्द्धमान ने जो आचार-धर्म की व्यवस्था की है, वह अचलक है ओर महामुनि पार्श्व ने जो यह आचार-धर्म की व्यवस्था को है, वह वर्ण आदि से विशिष्ट तथा मुल्यवान वस्त्र वाली है। जब कि हम एक ही उद्देश्य से चले हैं तो फिर इस भेद का क्या कारण है ?" केशी ने गौतम के सामने वह जिज्ञासा प्रस्तुत की और पूछा-- "मेवाविन् ! वेष के इन प्रकारों में तुम्हें संदेह कैसे नहीं होता ?" केशी के ऐसा कहने पर गौतम ने इस प्रकार कहा--"विज्ञान द्वारा यथोचित जान कर ही धर्म के साधनों-उपकरणों की अनुमति दी गई है। लोगों को यह प्रतीति हो कि ये साधु हैं, इसलिए नाना प्रकार के उपकरणों की परिकल्पना की गई है। जीवन-यात्रा को निभाना और 'मैं साधु हूँ,' ऐसा ध्यान आते रहना वेष-धारण के इस लोक में ये प्रयोजन १-विशेषावश्यक भाज्य, गाथा 1829 : मूलगुणा छन्वयाइं तु। २-मूलाचार, 112-113 / ३-स्थानांग, 91693 /