Book Title: Uttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन एक-दूसरे के निकट ही है, किन्तु वहाँ भी पुंडवर्धनीय और कोटिवर्षीय नाम को दो स्वतंत्र शाखाएं प्रचलित थीं। ताम्रलिप्ति में ताम्रलिप्ति-शाखा का प्रचार था। खरवट भू-भाग में खरवटिया-शाखा का प्रचार था। इस प्रकार और भी बहुत सी शाखाएँ पल्लवित हुई थीं, जिनके आधार पर हम कह सकते हैं कि बंगाल जैनों की एक प्राचीन भूमि है / यहीं जैनों के प्रथम शास्त्र-रचयिता भद्रबाहु का उदय हुआ था। यहाँ की धरती के नीचे अनेक जैन-मूर्तियाँ छिपी हुई हैं और धरती के कार अनेक जैन-धर्मावलम्बी आज भी निवास करते हैं।" उड़ीसा ई० पू० दूसरी शताब्दी में उड़ीसा में जैन-धर्म बहुत प्रभावशाली था। सम्राट खारवेल का उदयगिरि पर्वत पर हायोगुंफा का शिलालेख इसका स्वयं प्रमाण है / लेख का प्रारम्भ-'नमो अरहंतानं, नमो सव-सिधानं'-इस वाक्य से होता है / उत्तर प्रदेश भगवान् पार्श्व वाराणसी के थे। काशी और कौशल-ये दोनों राज्य उनके धर्मोपदेश से बहुत प्रभावित थे। वाराणसी का अलक्ष्य राजा भी भगवान् महावीर के पास प्रवजित हुआ था। उत्तराध्ययन में प्रवजित होने वाले राजाओं की सूची में काशीराज के प्रवजित होने का उल्लेख है, किन्तु उनका नाम यहाँ प्राप्त नहीं है। स्थानांग में भगवान महावीर के पास प्रवजित आठ राजाओं के नाम ये हैं (1) वीराङ्गक, (2) वीरयशा, (3) संजय, (4) ऐणेयक (प्रदेशी का सामन्त राजा), (5) सेय (आत्मकष्या का स्वामी), (6) शिव (हस्तिनापुर का राजा), (7) उद्रायण (सिन्धु-सौवीर का राजा) और (8) शंख (काशीवर्धन)।३ इनमें शंख को 'काशी का बढ़ाने वाला' कहा है। संभव है उत्तराध्ययन में यही काशीराज के नाम से उल्लिखित हों। विपाक के अनुसार काशीराज अलक भगवान् १-जैन भारती, 10 अप्रैल 1955, पृ० 264 / २-प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, द्वितीय खण्ड, पृ० 26-28 / ३-स्थानांग, 8.621 /